अनैतिकता की धूप अणुव्रत की छतरी | Anaitikata Ki Dhoop [ Anuvrat Ki Chhatari ]

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Anaitikata Ki Dhoop [ Anuvrat Ki Chhatari ] by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लैतिक्ता डतिहाम्स के ठार्डने भें प्रश्न--आपने अपन युग में नेतिक मूत्या की पुन प्रतिप्ठा के लिए विशेष प्रयास किया है । इस प्रयास में आपने लम्बी सम्वी याप्राए वी हैं, नैतिक साहित्य तैयार बरवायां है, जन-सम्पव बढ़ाया है तथा और भी बहुत कुछ किया है। मेरी एवं जिशासा है कि इस सन्दभ में अतीत मे भी डुछ बाम हुआ है कया ? यदि हुआ है तो वहू विस श्रम से हुआ है और विसने रिया है * उत्तर- मैतिवता सामाजिक जीवन था अपरिहाय अग है । बिसी भी युग भोर किसी भी समाज मे इसकी अपरिहायता को नकारा नहीं जा सकद 1 इसलिए समाजशास्थ, नीतिशास्त्र और धमशास्त्र--तीना घाराओं मे इसकी ब्याश्या उपलब्ध है । हर शास्त्र की व्यारुपा की पृष्ठभूमि मे उसका जपना दष्टिक।ण भौर परिस्थित्यिा प्रतिचिम्बित है कितु उनकी अतिमं परिणत्ति एक निदु पर जापरहीती दै । इस दुष्टि से उक्त प्रश्न धी उत्तर श्खला बहुत लम्बी टो जाती 1 सव ास्छा म प्रतिपादित नैतिकता की भचार सहिता का समालोचनात्मत' अध्ययन एम स्वत श्र लौर समयसाध्य विषय है 1 प्रस्तुत सदम मे हम शुछ प्रथा भौर पग्रथ प्रणतताआ फो सामने रघवर इस चर्चा को कमश आगे बढात रहेंगे । भारतीय लोक विता म धम, अय, काम भौर मोक्ष ~ पन चार पुदषार्थोषी परम तत्त्व माना गया है । गाध्यात्मिक दृष्टि अर्थ और काम को वह प्ूत्यनही देती जो धम थौर मोक्ष वा प्राप्त है। विन्तुभर्याजा म प्रशस्त प्रकारोका परिहार एक सीमा तक धम की परिधि में समाविप्ट हो जाता है । इसी प्रकार अनियधथित काम मै नियत्रण कौ दिशा असत्‌ मे सत फी जोर यतिसूचक मानी जाती है । समाज, राज्य और धमनीति भी इन चारो पुद्पार्थों से अनुवधित है । इस अनुवधता म भी नीतिशास्ता मे ननिक्ता क्रा व्यवस्थित और सायोपाग विश्लेषण उपलब्ध नहीं होता, फिर भी यय तर विकोण सामग्री वे भाधार्‌परर यह जाना जा सकता है कि उस युग म नैतिक मूल्यों के निर्धारण वा मानदड बया था गौर वे लोग-जीवन को किस प्रकार प्रभावित करत थे । माश्चात्य विद्वानों के साहित्य तथा उनके अनुक रण स्वरूप लिखे गये साहित्य नैतिकता इतिडास के




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