ज्ञानविलास | Gyan Vilas

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Gyan Vilas by श्री ज्ञानसुन्दरजी - Shree Gyansundarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध श्रीर^नप्रभाकर ऋनयुष्पमारा पुष्प न० ८२ - ' झंथ थी प्रतिकरमण मूल सूत्रम्‌ । नमस्कार, इरया हि, तस्सो्तरी, रन्न॑थ, लोगस्स, सामा- पिक सेना, पारना, चैप्यमन्दनो, स्थुदयो, स्तवनो, समायो शमादि घो इसी पुस्तक्रके प्रारभमे लिखा गया हे । कणटस्थ कर- नेवाले भाद दसौ पुस्तकमे कर सक्ते दै यास्ते यद षत या नदी सिखा दे। यहापर मान प्रतिक्रमणकफे शेष मूल सन्त दी लिसा जावेगा। जो कि कणठस्थ करनेयाले सुमितेकें साथ कर सके। सार्थ भार सेठ प्रतिकमण थन्य पुस्तक द्वारा प्रकाशित किया जायगा । ॥ प्रतिक्रमणकी आदिसे देववन्दन ॥ इरियायदि पड़िंव मके वैस्यवन्दनमे नम्ुव्युण तक कहेना देखो प्रष्ट ३ से बादमें रिहत चेदथाणकफा पाठ-- ~ झरिदत चेइयाण करेंमि काउस्मर्ग बदशयसियाएं पूञ्रणपत्तिसाए सकारयनत्ति्ाए सम्माणचत्तिग्राए बोदहिलाम वेत्चिमाए निरूयसम्गपत्तिसाए सद्धाए मेदाए धीर्‌ धारयार्‌ अणुष्येहाए चढ़माणीए उामि काउस्मग्ग | यनेत्य० 1 एक नवफारका काउस्मग्ग करके एक धई नोना, देषो एृट १७ से




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