भगवान् महावीर आधुनिक सन्दर्भ में | Bhgwan Mahavir Aadunik Sandrbh Me

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Bhgwan Mahavir Aadunik Sandrbh Me by नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( खं ) उनके जीवन दर्शन की यही पृष्ठभूमि उन्हें क्रांति की श्रोर ले गई । उन्होंने जीवन के विभिन्न परिषार््वों को जड़, गतिहीन श्रौर निष्क्रिय देखा । वे सवमें चेतनता, गति- शीलता श्रौर पुरुपाथे की भावना भरना चाहते थे । धार्मिक, सामाजिक, अधिक श्रौर वौद्धिक क्षेत्र में उन्होंने जो क्रांति की, उसका यही दर्शन था । घामिक क्रान्ति : महावीर ने देखा कि धर्म को लोग उपासना की नहीं, प्रदर्शन की वस्तु समभने लगे हैं। उसके लिए मन के विकारों श्रौर विभावों का त्याग श्रावश्यक नहीं रहा, श्रावश्यक रहा यज्ञ मे भौतिक सामग्री की झ्राहुति देना, यहाँ तक कि पशुश्नों का वलिदान करना । धर्म ग्रपने स्वभाव को भूल कर एकदम क्रियाकांड बन गया था । उसका सामान्यीकृत रूप विक्ृत होकर विशेषाधिकार के कठघरे में वन्द हो गया था । ईश्वर की उपासना सभी मुक्त हृदय से नहीं कर सकते थे । उस पर एक वर्ग विशेष का एकाधिपत्य सा हो गया था । उसकी दृष्टि सूक्ष्म से स्थूल ग्रौर श्रन्तर से वाह्य हो गई थी । इस विपम स्थिति को चुनौती दिये विना शझ्रागे बढ़ना दुप्कर था । भरत: भगवान्‌ महावीर ने प्रचलित धर्म आर उपासना पद्धति का तीत्र शब्दों मे खंडन क्रिया श्रौर वताया कि ईश्वरत्व को प्राप्त करने के साधनों पर किसी वर्ग विशेष या व्यक्ति विशेष का श्रधिकार नहीं है। वह तो स्वयं में स्वतंत्र, मुक्त, निर्लेप श्रौर निर्विकार है । उसे हर व्यक्ति, चाहे वह किसी जाति, वर्ग, धर्म या लिंग का हो-उमन की शुद्धता श्रौर श्राचरण की पवित्रता के वल पर प्राप्त कर सकता है । इसके लिए ्रावष्यक टै कि वह्‌ श्रपने कपायों-- क्रोध, मान, माया, लोभ-को त्याग दे। धर्म के क्षेत्र में उस समय उच्छ ह्ललता फैल गई थी । हर प्रमुख साधक श्रपने को सर्वेशर्वा मान कर चल रहा था । उपासक की स्वतंत्र चेतना का कोई महत्त्व नहीं रह गया था । महावीर ने ईश्वर को इतना व्यापक वना दिया कि कोई भी ग्रात्म-साधक ईश्वर को प्राप्त ही नहीं करे वरन्‌ स्वयं ही ईश्वर वन जाय । इस भावना ने श्रसहाय, निष्क्रिय जनता के हृदय में शक्ति, श्रात्म-विश्वास श्रौर श्रात्म-वल का तेज भरा । बह सारे ग्रावरणो को भेद कर, एक वारगी उठ खड़ी हुई । प्रव उसे ईश्वर-प्राप्ति के लिए पर- मुखापेक्षी वन कर नहीं रहना पड़ा । उसे लगा कि साधक भी वही है श्रौर साध्य भी वही है । ज्यों-ज्यों साधक, तप, संयम श्रौर श्रहिसा को झ्रात्मसातु करता जायेगा त्यों-त्यों वह साध्य के रूप में परिवरतित्त होता जायगा । इस प्रकार धर्म के क्षेत्र से दलालों श्रौर मध्यस्थों को वाहर निकाल कर, महावीर ने सही उपासना पद्धति का सुचपात किया 1 सामाजिक क्रान्ति: महावीर यह श्रच्छो नरह जानते थे कि धार्मिक क्रांति के फलस्वरूप जो नयी जीवन-दप्टि मिलेगी उसका प्रियान्वयन करने के लिए समाज में प्रचलित रूढ़ मुल्यों को भी बदलना पड़ेगा । रसी सन्दर्भ में महावीर ने सामाजिक क्रांति का मूव्रपात स्तिया! महावीर




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