भाग्य और पुरुषार्थ वा तक़दीर और तदवीर | Bhagya Aur Purusharth Va Takdeer Aur Tadveer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) प्रास पास के मामूली परमाणु श्रात्मा से चिपटकर उसकी ` चाल को बिगाड़ देते हैं और द्रव्य कमं कहलाने लगते हैं । संस्कार कहो वा कमं बंधन कहो, चाहे जो नाम रकल, बात श्रसल यह दी है कि कषाय करने से फिर फिर कषाय पैदा होने के संस्कार पड़ते है ¦ कषायौ के उत्पन्न होते रहने से जीव की उन्मत्त की सी दशा हो जाती है, जिससे उसका अपने भले बुरे की कुछ भी तमीज़ नहीं रदती है, बुद्धि भ्रष्ट होकर श्रपने को कुछ से कुछ खमसने लग जाता है; श्राप दी अपने हाथो श्रपना श्रहित करने को उतार हो जाता दै, विषय कषायो के बरस होकर श्रपने को वेवस समभने लग जाता है, इस दी का नाम मोहनीय कमं है जिसके दो मेद हैं पक दशन मोहनी श्रौर दूसरा चारित्र मोदइनी, अपने को कुछ से कुछ समभा वेना, बुरादे को मल श्र श्रद्दित को हित मानने लगना यह ही दशन मोहनीय का कामहै श्रौर यष ही मिथ्यात्व है ! कषाथो का भड़कना, विषय कषाय में फंसना, रागद्वेष करना यह चारि मोहनीय का कामहै कषायो के भडकने से श्रात्मा की जानने की शक्ति पर मी पदां पड़ जाता दहै, वह शक्ति दो प्रकार की है, पक वशेन श्रीर दूसरा ज्ञान, संसारी जीव श्रपनी इन्द्रियो के दारा जव किसी वस्तु को जानने की तरफ श्रपना उपयोग लगाता है तो तुरन्त हो उसको उस वस्तु का ज्ञान नहीं होता है किन्तु सवं से पहले उसको यह दी मालूम होता है कि कुछ है, इस दी को दशंन कते हैं, फ़िर जब वह यह जानने लगता है कि उसका कुछ श्राकार है था उसका कोई रंग है या किसी प्रकार की कोई गंध है या किसी प्रकार का कोई स्वाद है, इत्यादि जब किसी भी इन्द्रिय का कोई विषय उस बस्तु मे मालुम होने लगतादहै, तव दी सें बह जानना क्लीन कहलाता है । वशंन पर पदां पड़ना श्र्थातं उस्म खराबी




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