जैन साहित्य में विकार | Jain Sahitya Me Vikar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
तिलक विजय पंजाबी - Tilak Vijay Punjabi
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प्रबोध बेचरदास पंडित - Prabodh Bechardas Pandit
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९३ )
न्तचाद की पचित्नर सरिता में धोने के छिये करिवद्ध हो जाना
चादिये । व्यवहार कुशल व्यापारनिपुण जेनसमाजकों भविष्य
मे श्रनेवाङी ्रापत्तियोके प्रतिकारका श्रभीमे उपाय करना
चाहिये | प्रतिचप लाखों रुपया धार्मिक मुकदमे वाज़ी में-व्यय
करने वादी मन्दिरोकी दीवारों पर मनो सोना लिपवाने धारी.
लाखों रुपया रथयात्रामें वद्दानेवाछी श्नौर अरसंख्यधन सुनिते-
शियोकिं लिये लुखा देने वाटी जेनसलमाज 'कवाल' कः दस
शेरको विचार पूर्वक पढ़ें झौर समझे ।
श्मगरे ्रवभी न खमे तोमिर जाश्चोगे दुनियासे ।
तम्दारी दास्तां तक भीं न होगी दास्तानोंमें ॥
हिन्दी सापा भाषियों को ऐसी श्रचुपम पुस्तक पढ़नेका
सौभाग्य प्राप्त होगा, इसके लिये झनुवादक मददोदय 'घन्यवाद
के पात्र हैं ।
पहाड़ीं-धीरज, दिल्ली |.)
ज्येप्ठ कृप्णा 2 बी० नि० सं० २छ्४त |
अयोध्याप्रसाद गोयलीय “दास”
१. पक्लवरभ्ता न मे वीरे, न द्वेषः कपिल्लादिषु।
यु क्तिमहचनम् यस्य, तस्यक्ार्रः परिग्रहः ॥
॥ -धीदरिमदघुरि।
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