विहाग | Vihag

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डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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सुमित्रा कुमारी - Sumitra Kumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उस दूर विजन में, सजनि दूर; कोकिल का वद्द॒मधुस्नात बोल ! चातक का पी; पी, कहाँ क्ररुण, उन्माद बढ़ाता था श्रतोल ! बह उठती सुख दायिनी बतः सखि, बीत गई वड सुभग रात ! खोले निकुझ के द्वार सजनः, बिखसते थे निज श्वासनफूल ! में अपने इन उच्छुवासों में; पाला करती थी इुदय - शूल ! बद्द छिपा प्राण का नवल गात; सखि; बीत गई वद्द सुभग रात !




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