भारतीय जाग्रति | Bhartiya Jagriti

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Bhartiya Jagriti by स्व. रायबहादुर लाला मक्खनलाल जी मित्तल - sw. raybadur lala makkhanlal ji mittal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाग्रति क्व श्र क्यो? ६ स्वास्थ्य का नाश करनेवाले पर्दे को दयाया जा रहा हैं। विवाह सम्बन्धी द्रादेशे दौर रीति-रमी में परिवतन हो रहे हैं। वाज्ञक और युवा रब बड़े को बाते बाबा वाक्यं प्रमाणम्‌ के भाव से गहण करने को तयार नदीं हं । किसान श्रौर मज्ञदूर श्रपने कष्टो के लिए, करेवज्ञ भाग्य को दोप्री सम कर नदी र्द सकते । ग्रामीण जनता अपने कछो के विपय में सोचती है, कारण श्र कायं पर विचार करती हैं, और अन्य देशो से आपनी तुलना करती है। शूठ या नीच समझे जानेवालों को भी श्रव नई रोशनी मिल रही है । उन्होने श्राप्मोद्धार का घीडा उठा जिया है, श्रार उसके लिए वे नाना प्रकार के कष्ट श्रौर त्याग सदन करने को तैयार हैं । श्रच्चा का पालन-पोषण करने तथा उन्हें शिक्षा देने की नई-नई विधियों पर विचार हो रहा है । प्रत्येक लड़का या लड़को किस प्रकार राज्य का उत्तम नागरिक बनकर अपना ्रधिक- तम विकास कर सकता है, आर देश के लिए श्रधिक से श्रधिक उप- योगी हो सकता है, इस विपय को सोचने-विचारने में श्रच्छ-अच्छे दिमाग लगे हुए हैं । इसी तरह प्राचीन धर्म-ग्न्थों को नई निगाह से देखा जा रहा है, जनता केवल उनको प्राचीनता के कास्ण ही उन पर ग्रन्ध-विश्वास करने को तैयार नदीं । सादिस्य की नवौन रचनाओं में निराला दो जोवन नजर श्रारहा है । नागरिको के ्रधिकारो तथा कतव्य का नए सिरे से विचार दो रहा है । कहाँ तक गिनावे; संस्कार, सुधार श्रोर परिवर्वन श्रादि कौ विविध क्रिये प्राचीन भारत को नवीन भारत वनाने मे विलक्षण रूप से कयिवद्ध दँ । इस परिस्थिति को हम (जागृतिः कहते है । दमारो यद धारणा है कि प्राचीन समय मे चिरकाल तक भारतवर्ष यथेष्ठ उन्नत तथा गौरव- मय रह चुका है, बीच में वह कमजोर श्रौर पराधघीन हो, चला था; अर फिर वह चेतन हो रहा है; वह निद्रा छोड़ रहा है, श्र पूरी आशा हे कि थोड़े समथ म वह समृद्ध तथा शक्तिशाली बनकर संसार में श्रपने मदान्‌ क्न्य का पालग करणा, श्रौर विश्व की श्रधिकांश दीन-दुखी २ १




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