जय महावीर | Jai Mahaveer
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नान चेतना का जगता है-
भुवन प्रकाशित-सा लगता है।
देष-घृणा सव घुल जाते है-
दरार पुण्य के खल जाते है1.
मानव-मानव बनने लगता-
ज्ञान हृदय में जगने लगता ।
लेकिन यह भी तब सम्भव है-
होता पावन नर उद्भव है।
ओर नही तो कोड् कंसे-
धो सकता है अन्तर कंसे?
ऐसे ही जव घटा घिरी थी-
सुख की सारी घडी फिरी थी |
हिसा का सा श्राज्य विद्या था-
मन मे निघन भाव छिपा था ।
मानव-दानव से लगते थे-
अच्छे भाव नही जगते थे।
जय महावीर / 17
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