विनोबा के विचार भाग - १ | Vinoba Ke Vichar Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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महादेव देसाई - Mahadev Desai
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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूप्ग-सदित्का सेय १७
द्य दो देखन से चला चरा न दीखा कोय।
जो घट सोजा मापना सुभ-सा बुरा च कोय हे
दूसरी दवा है मीन । पहली दवा दूसरेके दोप दिखे ही नहीं, इसलिए
1 दप्टि-दोरसे दोप द्खिनेपर यह् द्री दवा अचूक काम करती है।
इससे मन भोतर-हो-भीतर तड़फड़ायेगा। दो-्वार दिन सींद थी खराद
जायगी; पर आखिर में थककर सन शांत हा जायगा । तानाजीके सेत
रहनेपर मावले पीठ दिखा देंगे एसे रंग दिखाई पड़ने छगें। तव जिस
रस्तीकी मददसे वे गड़पर चढ़े थे और जिसकी मददसे अब वे उतरनेका
प्रयत्न करनेवाले थे बह रस्सी ही सूर्याजीने काट डाली। “वह रस्सी तो
मने कमीरी काट दो है #” सूर्याजीके इस एक वाक्यनें लोगोंमें निराशाकी
दौरथी पैदा करदी और गढ़ सर हो गया। रस्सी काट डालनेका तत्त्वज्ान
हूत ही महत्वका हैं । इसपर अलगसे लिखनेकी जरूरत हैं। इस वक्त तो
उत्तमेसे टी अभिप्राय हँ कि मौन रस्सी काट देने जैसा ईै। “था तो दूसरेके
दोप देखना भूल जा, नहीं तो बैठकर तड़फड़ाता रह । मच पर यह नौवत
आ जादी हैं बीर यह हुका नहीं कि सारा रास्ता सीघा हो जाता है।
कारण, जिसको जीना हूं उसके लिए बहुत समयतक तड़फड़ाते बैठना
सुतिवाजनक नहीं होता |
तीसरी दवा ह कर्मयोगर्मे न्न हौ रहना । जसे जाज सूत कातना
ठ्वेलादही एतना ्योगहुं कि छोटे-वडे सबको काफी हो सकता है, वैसे ही
क्मयोग एक ही ऐसा योग हूं सिसकी सर्वसाधारणके लिए वे-खरके सिफा-
रियर की जा सकती हिं। फियह हुना, चूत कातना ही आजका कर्म-योग है।
सुतत कातनेका कर्प-योग स्वीकार किया कि लोक-निदाकों मथते रहनेकी
पतत ही नहीं रहती । जैसे कितान मन्न-अन्के दानेकी असली कीमत सम-
सता है, वैसे ही दूत कातनवालेको एक-एक क्षणके महृत्तका पता चलता
हैं। “लणभर भी खाली न जानें दे” समर्थकी यह सूचना अथवा “क्षणार्ध
थीं व्यर्थ न खो” नारद का यह नियम क्या कहता हूँ, यह सूत कातते हुए,
समरध: समममें आता हैं । कर्मयोगका साम्थ्य बदुभूत है। उसपर जितना
र
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