पंचायत - प्रणाली के महत्व, इतिहास वर्तमान स्वरूप का विवेचन | Panchayat Pranali Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेश पु उसी निवन्ध का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत किया जा रहा है । प्रागतिहासिक मानव श्रारम्भ से ही मनुष्य सुख श्रौर श्रानन्द की खोज में रहा है। श्रपने जीवन को श्रघिकाधिक सुखमय तथा श्रानन्दमय बनाने के लिए उसने भांति-भांति के प्रयोग किये हैं । सामाजिक श्राधिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में भी श्रघिक सुख धान्ति घ्रौर श्रानन्द का वातावरण बनाने के लिए मनुष्य ने भ्रादिकाल से प्रयास दिये हैं । सामाजिक जीवन के उदय का सुल कारण यही था । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य को स्वेच्छा से कई वन्घन भी स्वीकार करने पड़े । मनुष्य का सारा श्राचरण इस बात की पुष्टि करता है। एक हद तक मनुष्य को इस प्रकार लगाये गए बन्धन झधिक लाभप्रद लगे लेकिन कालान्तर में जब ये श्रंकुश बहुत धधघिक बढ़ गये तो स्वाभा- विक था कि वे उसे श्रत्यघिक लगने लगे श्रौर उसकी भ्रनेक परेशानियों के कारण हो गये । हमारे मत में जबतक व्यक्ति समाज के लिए श्रौर समाज व्यवित के लिए का सिद्धान्त पुर्णतः चरितार्थ होता रहा--जवतक व्यक्ति का क्षेत्र परिवार श्रौर ग्राम तक सीमित रहा--तवबतक मनुष्य को इन परेशानियों का इतना सामना नहीं करना पड़ा । इसका कारण यह है कि तब सामाजिक संगठन इतना विस्तृत तथा जटिल न था कि व्यक्ति व्यक्ति का विचार न कर सके । इस छोटे-से समाज में जो इने-गिने परिवारों से दने ग्रामों तक सीमित था व्यक्ति पूरे ग्राम-समाज को झपने सीमित ज्ञान की दिचार- परिधि में सुगमतापूर्वक रख सकता था । लेकिन जीवन के इस प्रकार सामाजिक हो जाने से उसके नियमन दी घावद्यकता पड़ी । सामाजिक धकाई धीरे-धीरे दड़ी होती गई भौर दुछ समय के चाद उसमें वकई-करई गांवों के समूह धा गये। फिर राज्यों की उत्पत्ति हुई घोर समाज के प्रदन्घ मे घघिकाधिक वे न्द्रीव रण होता गया। हर देश में सत्ता सग्याट में देन्द्रित होने लगी । देश दी सुरक्षा धौर व्ययस्पा दनाये रपने के लिए एस प्रवार के देस्ट्रीबर इवकता घौर घधिक व गई । हमारे देव मे भी सरराटों देय पर जसा कि प्राचीन एतिहास से ध्रकट हैं घोर राजा हे उदय हे




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