भारत वर्ष का बृहद इतिहास भाग १ | Bharat Varsh Ka Brihad Itihas Bhag -1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.99 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चैदिक चरणों मैं ऐसरेय झार्नाय 'थवा् 'चरण की घुरातन संदिता की स्थिति को समझे विदा जिसमें
ये सच मन्त्र संदिता के 'क्न थे, पूर्वोक्त पंक्तियों का लिखना लेखक के '्ति निकृष्ट चर दूपित ज्ञान का
द्योतक है । शीशिरीय संहिता में ही सारा कग्वेद समाप्त नद्दीं दो गया 1
थी सुन्शीजी के इतिदास का यह मधम सांग वैदिक युग-विपयक है । पर इस में जहां निकृष्टम
बिल्ायती लेखकों के चेद-विपयक '्रत्यन्त हीन सत उपलब्ध हैं, वहाँ मैदिक विपर्यों पर मौलिक, गरमीर झथवा
रुपयोगी लेख लिखने घाले निम्नलिखित भारतीय विद्वानों के मत का सर्वेथा थमाव है--
१, श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती । २, थी सत्यवत सामधमी 1 ३, श्री श्यामजी कृष्ण वर्मी । ४, पं०
शिवशझ्र काव्यती थे । २, थी नन्दुलाल दे । ६, उमेशचन्द दिधारत्र 1 ७. श्री रुलियारास कश्यप 1 ८, शी डि.धार,
मॉकड । 8. श्री राजगुद देमराज 1 १० थी प्रयोधचन्द्सेन गुप्त । ११८ श्री सीतानाथ अघान । 9 २, प०
प्ह्मदुूस जिश्ञासु । ३३. प्रोफेसर ज्िमरमन । १४, वि रह्ाचार्य । १, शी झथावले । १६, झार०, दि०
पायडेय । १७. पं० युधिष्टि मीमांसक।
वस्तुतः मुन्शीज्ी का ग्रन्थ परुपासान्थ लोगें, की करपनाओं का संग्रद माय है । मौलिक और युक्त,
चूतन खोज का इस में झंश भी नहीं । झ
श्री सुशीजी को 'चादिए कि झपने लेखकों से इमारा याद कराए भम्पथा ऐसे ग्रन्थ प्रकाशित करना
बन्द करें 1 मारतीय इतिहास के अनेक विपरयो का नियुंय इस प्रकार से शीघ्र हो जाएंगा ।
पाश्चा्यों ने भारतीय फऋषियों को गालियां दौ-- न
भारतीय शान का मूल सत्य कयन दै | ऋषि छोग परम सत्यवच्त थे | उन्दोंने उपनिषद्, भारयपक,
घाहमण भौर चायुर्वेद झादि के पन्यों में सत्य भापण किया । उनके श्वीकृत ऐतिदासिक मददापुर्टपो को
मिधिकल कहना, सारे झा भरपियों को गाली देना है । वर्तेमान युगीन “वैज्ञानिक” शालियों का यद्दी प्रकार
दै। इसने इस शृददद् इतिहास में दता दिपा दै कि भय थे गालियां सट्दी न जाएंगी ।
इन पैशानिक-युर्वो के मिप्या प्रचार से सोशलिस्ट छर कम्यूनिस्ट भी झा ऋषियों के विर्द्ध भनेक
लेस लिख रदे हैं । यथा राइल साइकृप्पायन जी शा । उन सयझे लेखों की परीघ्षा इस इतिइपस में दे ।
जिस प्रकार उदयन, कुमारिक्ष और उधोठकर की सतत 'चोर्दो से धर्मकीर्ति, दिल नाग और वसुबन्थु भादि के
राशञाधित विचार छिस्र मिन्न हुए और जिस प्रकार धौद्धमत का भारत भूमि से उच्देद दो गया, उसी कार
स्वामी ददानन्द सरस्वती, पं० शुरुद् एम, ए- और पथिदत युचिष्टिजी मीमांसक के लेखों हो धिज्ञानिक-मुरदा
के सिध्या वाद शीघ ज्जरीमूत होंगे । इस विपय में यदद गृद्ददू इतिहास सी झपना काम करेंगा। इसके--ए
प्रथम अभ्याप में--इदिदास झादि उन्नीस शब्दों का ययारप शर्थ प्रदर्शित किया गया दे । इसके पाढ
से शात होगा, कि मारव में प्राघीनतम काल से इतिहास दिप्य का थड़ा चादर था|
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