आयुर्वेद का बृहत इतिहास | Aaiurved Ka Brahat Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैदिक काल या प्रागतिहासिक काल ९ है। इस सामग्री से विदित होता है कि किसी समय उस प्रदेश में सर्वाग पूर्ण सभ्यता का विकास हुआ था जिसे सिन्धु सभ्यता का नाम दिया जा सकता है । यही सभ्यता हमको ऋग्वेद मे मिलती है। सिन्धु सस्कृति ऋग्वेद से पूर्व की है या पीछे की यह एक समस्या है । एक विचार यह है कि वेदो के ज्ञान का प्रादुर्भाव सृष्टि के साथ ही हुआ है अर्थात्‌ मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही वेदो का ज्ञान पृथ्वी पर हुआ है अनादिनिधना दिव्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा --मनु । आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार सृष्टि से पुर्वे ज्ञान उत्पन्न हुआ अनुत्पाद्ैव प्रजा आयुर्वेदमेवाय्रेश्सूजतू-- सुश्नुत सूत्र अ १ आयुर्वदमेवाग्रे्सूजत्ततो विरुवानि भूतानि --काइ्यप सहिता । इतिहास का प्राचीन ख्रोत ऋग्वेद सहिता मे है । यह आयें जाति का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। भापाशास्त्र के विद्वानो का कहना है कि ऋग्वेद की भाषा व्याकरण और घातुओ की दृष्टि से ईरानी यूनानी लातीनी टयुटनी कैल्ट और स्लाव भाषाओ से मिलती है जैसे ये सब एक ही मूल भाषा से निकली हुई हो । परिवार के निकटतम सम्बन्धो एव जीवन के मौलिक अनुभवों के सूचक दब्द इन भाषाओं में एक-जैसे ही है जैसे माता-पिता पुत्र-पुत्री ईदवर हृदय आँसू कुल्हाडी वृक्ष कुत्ता और गौ आदि दब्द । उदाहरण के लिए देखिए--सस्कृत मे मातर लैटिन में मेतर अग्रेजी मे मदर सस्कृत में सुनु लिथवानियन में सुनू प्राचीन जर्मनी की खडी बोली में वे सुतु इग्लिश में सन । वेद और अवेस्ता--आर्यों के ऋग्वेद की भॉति अवेस्ता पारसियों का प्राचीन ग्रत्थ है। ऋग्वेद से अवेस्ता की भाषा बहुत अधिक मिलती है। अवेस्ता का अर्थ शास्त्र है जिसमे गाथा या प्राथनाएँ ऋग्वेद की भाँति ही है। इसमें यज्न यज्ञ विस्पेरद बलि सम्बन्धी कर्मकाड तथा वेन्दिदाद प्रेतादि के विरोधी नियम आदि भी है । अवेस्ता की टीका पहुलवी मे हुई है इस टीका को जेन्द कहते है जेन्द का अर्थ टीका है । अब लोग जेन्द और अवेस्ता इन दोनो शब्दों को मिलाकर पुस्तक तथा भाषा के लिए जेन्दावेस्ता या जिन्दावेस्ता कहते है । अवेस्ता और ऋग्वेद के शब्दों में बहुत साम्य है ऋग्वेद मे आया भेघज दाब्द श्. सिन्धु सम्यता के लिए हिन्दू सभ्यता तथा प्राचीन भारत का इतिहास देखे जा सकते हे । २ ऋक्तुक्तसंग्रह--शी पं० हरिदत्त शास्त्री भूमिका पृष्ठ ८।




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