संस्कृत साहित्य में आयुर्वेद | Snskrit Sahity Men Aayurved
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विषय-प्रवेश
संस्कृतका एक प्रसिद्ध ॒श्रामाणक दै कि कवयः कऋरान्तदशिनः--कवि
लोग क्रन्तदशं होते हं; जिस वस्तुको सामान्य लोग नहीं देख सकते,
कवियोंकी दृष्टि उसके भी आगे पहुँच जाती है; इसीसे हिन्दीमैं प्रसिद्ध हो गया
कि जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि । कवि सूक्ुमसे सूक्ष्म ओर स्थूलसे
स्थूल वस्तुका सजीव चित्रण अपनी वाणीसे उपस्थित कर देता है। जिस
मोक्षका दर्शन सामान्य जनके लिए असम्भव है, काव उसको भी अपनी
वाणीसे त्रालोके सामने उपस्थित कर देता है । इसीसे उसे भूत, भविष्य,
वत्तमान-- तीनो कालका ज्ञाता कहते दै ।
कविके बनाये काव्य संसारकी सवर वस्तुभओकी म्छंकी मिल जाती है ।
ईश्वरको भी कविके रूपं कदा गया है [कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूः] ।
वेद उसका काव्य है, जो कि कभी नहीं मरता और न कभी जीणु-शोण
दोता है [पश्य देवस्य काव्यं यो न ममार न जीयेति] । इसी तरह कालिदास
आदि कवियोके बनाये कार्यों वे संसार घटनेवाली सब्र घटनाओकी समीक्ता,
उनकी जानकारी मिलती है । व्यास ऋषिके बनाये महाभारतम धमं, श्रथ,
कामके सम्बन्धमेँ सम्पूणं जानकारी आ गई है; ऋषिका कद्दना है कि धर्म,
अर्थ, काम ओर मोक्षके सम्बन्धमें इससे बाहर कुछ बचा ही नहीं, जो कि
बहुत अशो सत्य भी है ।
इसी प्रकार कवि कालिदासके काव्योंमें भूगोल, इतिहास, पुराण,
ज्योतिष, श्रायुवंद, राजनीति श्रादि सब वातौका उल्लेख मिल जाता है ।
इसीसे कविकी रचना--नाटक-के सम्बन्ध कटा जाता है कि-
न तच्छास्त्रन सा विद्या न तच्छिल्पं न ताः कलाः।
नासौ योगो न तञ्ज्ञानं नाटके यन्न॒ दश्यते ॥-नास्वशाल्ल
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