विज्ञान प्रयागकी विज्ञानपरिषतका मुखपत्र | Vigyan Pryagki Vigyanparishata Mukhpatra

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Vigyan Pryagki Vigyanparishata Mukhpatra by गोपालस्वरुप भार्गव - Gopalswaroop Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद | रा विज्ञान ॥ [ भांग १७ ` पूर्वोक्त याम्योत्तर बृत्तासे विषुववृत्तके ४ खमान भाग हो गये थे । उन प्रत्येक भागमे पंद्रह : पंद्रह अंशके छः छु। विभाग और करो श्रौर प्रत्येक विभाग चिन्हपर एक एक यास्योत्तर क्ृत्त खींच दो, जो उक्त चार यास्योत्तर वृत्ताकी तरह विधुच ब्त श्रौर स्पष्ट-परिधि-उ्तिपर लम्बरूप सम्पात करते हुए दोनों ध्रुव स्थानौपर परस्पर मिल जायंगे | इन याम्योत्तर वृत्तोको--जी २४ हौगे- विषुवांश संज्ञा प्राप्त होगी | फिर विषुघषत्त ओर किन्हीं भी दो याम्योत्तर चृत्तोके संपात स्थानोंपर जो. एक दूसरे से बारह' होरा या १८० अंशके अंतरपर हो २३० रके विक्षेप कोण उत्पन्न करता हुआ एक बृत्त खींचों। यह क्रो तिवृत्त होगा । इसके और विघुवद्ृत्तके पूर्व संपतको मेष वपय स्थान या वसन्त सम्पात कहते है । यहांसेदिराशि वा १८० श्रंश चलकर जो दूसरा संपात है ' उसको तुला জিতুন হাল या शरद सम्पात क्ते हँ । इन विषुव स्थानौसे &० अंशके अंतर पर ` जो याम्योत्तर रन्त दै उनके ओर कातिषन्तके उध्वं संपातको जो उत्तर श्ुवकी श्रोर २६ २८ सुका : हुआ है कर्कादि या दक्षिणाय्न संधि कहते हैं। और जो उक्त संपातोंके बीचमे दक्तिणकी ओरकों याम्योत्तर.वृत्त है उसके ओर क्रांति त्षत्तके अधः ' संपातकों मकरादि था उत्तरायण संधि कते है| इन संपातो श्रौरः श्रयन सन्धियौसे ऋतिवृत्तके चारः समान भाग হাব ই । इन भागोको तीन ` तीन विभागौमे नोर विभक्त करो । हस प्रकार ` ` सेभ्वूरं करांतिवृत्त बारह समान भागौ विभक्त हो जायगा; जिसका प्रत्येक भाग तीस अंशोका . होगा । उन्दी विभागोको सायन मेष, सायन दष आदि ` सज्ञा प्राप्त है। इन राशि चिन्होंसे एक . एक याध्योत्तरवृत्त ऋतिद्ृत्तपर लस्बरूपक संपात करते हुए खींचे जाये तो यह पूर्वोक्त ध्रुव स्थानौ परे” न मिलकर ऐसे दो विन्दुंओं पर मिलेंगे जो হু स्थांनोसे २४? २८' ह॒टे हुए एक दूसरेसे १८० अंतरपर पक ही জুস रेखा या द्त्तपर होगे । य तथा दक्षिण के परम क्रानि-श्र्थात्‌ २६० ; वृत्तोपर एक एक राशि चिन्ह होग।। भीनांस और विन्दु कदंब ।या क्रांतिबृत्तके केन्द्र कहलाते हैं। उत्तर कदंब उत्तर पबसे २३' २८' पिधुव वृत्तकी ओर हटा हुआ १८ वीं होरा पर होगा शोर वृक्षिण कदंव दक्तिण घुव्से २३२८ हटा हुआ ६ होरा पर होगा। बसंत संपातसे पूर्वकी और ३० अंश चल्लकर क्रांति बृत्तपर» जो राशि चिन्द्र है उस मेपान्त स्थान कहते ह । इसका क्रति या निस्त्धरृन्तसे याम्योकत्तर अंतर ११ ०, है।इस स्थानसे फिर पूथकी ओर ३० अंश चल कर क्रांतिव्वत्त पर जो दूसरा राशिचिन्द्र हे उसको कृषभांत स्थान कहते हं। इसकी क्रांति था शुधोन्मुख ऋंशात्मक झंतर १६? ३० है। यहां से ३० अंश और हटकर जो राशि चिन्ह है उसे मिथुनांत स्थान कहते हैं. और उसकी क्रांति २३४' रद है। यहांसे दक्षिणायन अर्थात्‌ क्रांति वृत्तका घुमाव दृक्षिणकों आरम्भ होता है । यहांसे ज्यों ज्यों क्रातिपतकी ओर को हटगे त्यों त्यों क्रांति घटती जायगी | अतण्व कके राशिक्री क्रांति १६' ३० खिंहकी ११४० ओर कन्यान्तकी ० होगी । यह स्थान घिघुय बस पर होगा जैसा कि पहले कहा जा झुका है। यहांसे क्रांतिवृत्तके दक्षिणगगोलमे चलना शारंभ होगा फिर तुला राशिकी क्रांति ११ ० बृश्चिककी १६९ ३० श्रौर धनकी २३ ` २८ होगी । शृत स्थानसे उस्तरायणक्रा श्रारम्भ होगा, जिससे मकरकी क्रति १९१० कृभ्भकी १६० २३० और मसीनकी होगी। यह स्थान मी विषुव चृत्तपर हासा । अब यदि क्रांतिपात स्थानोंसे उत्तर और क्षिण एक पुक पूर्वांपर वृत्त-विषुधधृत्त के समाना- न्तर, ११९० हटकर, एक एक १६ ३० हटकर और एक एक २३९ २८ हटकर खींचे जाये तो इंने पिंकी ` पत्तों पर दो दो राशि चिन्ह पडगे। कैल क्र প্রা कन्यान्त स्थान तो विधुषबृस और क्रांतिवशके सम्पात स्थानोपर हूंणे। प्रेषान्‍न्त और सिदाब्त




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