कहानी | Kahani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
131 MB
कुल पष्ठ :
560
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कौन-सा शहर था, इसके बारे में जहाँ तक मैं समझता
हूँ, आपको जानने और म॒के बताने की कोई ख़ास ज़रूरत
नहीं | बस, इतना ही कह देना काफ़ी है कि वह जगह जो
इस कहानी से सम्बन्धित है, पेशावर के पास थी, सरहद के
क़रीब | और जहाँ वद औरत रहती थी, वह घर भोपड़ा-
नुमा था, सरकंडों के पीछे ।
घनी बाढ-सी थी, जिसके पीछे उस औरत का मकान
था, कच्ची मिट्टी का बना हुआ | चूंकि वद बाढ़ से कुछ
फ़ासिले पर था, इसलिए सरकंडों के पीछे कुछ छिप-सा गया
था, ऐसा कि बाहर कच्ची सड़क पर से गुज़रनेवाला कोई भी
उसे देख नहीं सकता था ।
सरकंडे बिल्कुल सूखे हुए थे। पर वे कुछ इस तरह
ञ्जमीन में गड़े थे कि एक मोटा पर्दा बन गये थे | पता नदीं,
` उस श्रौरत ने स्वयं वहाँ गाड़े थे या पहले ही से मौजूद थे ।
कुछ भी हो, कद्दना यह है कि उन्होंने बड़ा गहरा पर्दा कर
रखा था |
मकान कह लीजिए, या मिट्टी का मोंपड़ा | सिरफ़ छोटी-
'छोटी तीन कोठरियाँ थीं, मगर साफ़-सुथरी । सामान थोड़ा
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था, मगर अच्छा । पिछले कमरे में एक बहुत बड़ा
पलंग था, उसके साथ एक ताक़ था, जिसमें सरसों के तेल
का दिया रात-भर जलता रहता था! पर यदह ताक्र बहुत
साफ़-सुथरा रहता था, और वह दिया भी, जिसमें प्रति दिन
नया तेल और बत्ती डाली जाती थी |
अब में आपको उस औरत का नाम बता दूँ, जो उस
छोटे-से मकान में; जो सरकंडों के पीछे छिपा रहता শা,
अपनी जवान बेटी के साथ रहती थी |
अनेक बातें मशहूर हैं । कुछ लोग कहते हैं कि बह
उसकी बेटी नहीं थी | एक अनाथ लड़की थी, जिसको उसने
बचपन से गोद लेकर पाल-पोसकर वड़ा किया था। कुछ
कते ই किं वह उसकी नाजायज़ लड़की थी। कुछ ऐसे भी
हैं, जिनका ख़याल है कि वह उसकी सगी बेदी थी। जो-
कुछ भी असलियत है, उसके बारे में अधिकारपूर्वक कुछ
कहा नहीं जा सकता | यह कहानी पढ़ने के बाद श्राप स्वयं
कोई-न-कोई राय क्रायम कर लीजिएगा।
. देखिए, मैं आपको उस औरत का नाम बताना भूल
गया । बात असल में यह है कि उस औरत का नाम कोई
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