कहानी | Kahani

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Kahani by श्री पतराय - Shri Patray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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*: (० «डिक. ২২০ সি পশু “~ प्यादतत हयन অন্ত तेः १, --- 8 कौन-सा शहर था, इसके बारे में जहाँ तक मैं समझता हूँ, आपको जानने और म॒के बताने की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं | बस, इतना ही कह देना काफ़ी है कि वह जगह जो इस कहानी से सम्बन्धित है, पेशावर के पास थी, सरहद के क़रीब | और जहाँ वद औरत रहती थी, वह घर भोपड़ा- नुमा था, सरकंडों के पीछे । घनी बाढ-सी थी, जिसके पीछे उस औरत का मकान था, कच्ची मिट्टी का बना हुआ | चूंकि वद बाढ़ से कुछ फ़ासिले पर था, इसलिए सरकंडों के पीछे कुछ छिप-सा गया था, ऐसा कि बाहर कच्ची सड़क पर से गुज़रनेवाला कोई भी उसे देख नहीं सकता था । सरकंडे बिल्कुल सूखे हुए थे। पर वे कुछ इस तरह ञ्जमीन में गड़े थे कि एक मोटा पर्दा बन गये थे | पता नदीं, ` उस श्रौरत ने स्वयं वहाँ गाड़े थे या पहले ही से मौजूद थे । कुछ भी हो, कद्दना यह है कि उन्होंने बड़ा गहरा पर्दा कर रखा था | मकान कह लीजिए, या मिट्टी का मोंपड़ा | सिरफ़ छोटी- 'छोटी तीन कोठरियाँ थीं, मगर साफ़-सुथरी । सामान थोड़ा বি उष पष्य स ष বট চি 812 ए 0 = সা রি स রনি हि ८ व রা $ अ ~ < 1५४ ८ ২৭ ५. = न , ররর + ६ श यु 11 2828: 5,081 | 41 नि ~ + कष १९ # च £“ রি (1. ५ * পতি দস তত ক ৪১ বি পাপ ५५ ক, তে ও রি, । ५ 5 कार ऽ ८ थ +^ [ए ५ | ৮৫, 4 সস » নী ই জিত, ২ न পপি নি क ऋ পৃ भ তু 1 ~ ^ * क, ^, - , नस 1 ह $ 1 था, मगर अच्छा । पिछले कमरे में एक बहुत बड़ा पलंग था, उसके साथ एक ताक़ था, जिसमें सरसों के तेल का दिया रात-भर जलता रहता था! पर यदह ताक्र बहुत साफ़-सुथरा रहता था, और वह दिया भी, जिसमें प्रति दिन नया तेल और बत्ती डाली जाती थी | अब में आपको उस औरत का नाम बता दूँ, जो उस छोटे-से मकान में; जो सरकंडों के पीछे छिपा रहता শা, अपनी जवान बेटी के साथ रहती थी | अनेक बातें मशहूर हैं । कुछ लोग कहते हैं कि बह उसकी बेटी नहीं थी | एक अनाथ लड़की थी, जिसको उसने बचपन से गोद लेकर पाल-पोसकर वड़ा किया था। कुछ कते ই किं वह उसकी नाजायज़ लड़की थी। कुछ ऐसे भी हैं, जिनका ख़याल है कि वह उसकी सगी बेदी थी। जो- कुछ भी असलियत है, उसके बारे में अधिकारपूर्वक कुछ कहा नहीं जा सकता | यह कहानी पढ़ने के बाद श्राप स्वयं कोई-न-कोई राय क्रायम कर लीजिएगा। . देखिए, मैं आपको उस औरत का नाम बताना भूल गया । बात असल में यह है कि उस औरत का नाम कोई




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