चिंगारियाँ | Chingariyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुष्क जव होने लगा था कल्पनाओं का सुधा रस ॥ निकट पथ से चल दिये तुम रह गया में नयन खोले । हिल सकी मरी न जिहा 0 ओर तुम भो कुछ न बोले ॥ वेदना वह रह गई निःशेप जिसकी दीघं श्राह | खोजती फिरती सतत पद चिन्ह पथ विस्मृत. निगाहें ॥ काल की लहरि वहा कर ले गई सङ्कल्प মল के। फिर न काई নত मिला ए्से लगे मोंके पवन के ॥ दिन गया फिर रात आई अवाधियां फिर युग निरन्तर | ओर निकले दूर जीवन मरण केदो चार अन्तर |! सोचती है बुद्धि तुमको भूल जाने के बहाने । किन्तु लगती विफल आशा सुप्त स्वप्नों को जगाने॥ प्राण व्याकुल क्‍यों तुम्हारी चिर प्रतीक्षा में न जाने ॥




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