चिंगारियाँ | Chingariyan

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
2 MB
                  कुल पष्ठ :  
87
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शुष्क जव होने लगा था
कल्पनाओं का सुधा रस ॥
निकट पथ से चल दिये तुम
रह गया में नयन खोले ।
हिल सकी मरी न जिहा
0 ओर तुम भो कुछ न बोले ॥
वेदना वह रह गई निःशेप
जिसकी दीघं श्राह |
खोजती फिरती सतत पद चिन्ह
पथ विस्मृत. निगाहें ॥
काल की लहरि वहा कर
ले गई सङ्कल्प মল के।
फिर न काई নত मिला
ए्से लगे मोंके पवन के ॥
दिन गया फिर रात आई
अवाधियां फिर युग निरन्तर |
ओर निकले दूर जीवन
मरण केदो चार अन्तर |!
सोचती है बुद्धि तुमको
भूल जाने के बहाने ।
किन्तु लगती विफल आशा
सुप्त स्वप्नों को जगाने॥
प्राण व्याकुल क्यों तुम्हारी
चिर प्रतीक्षा में न जाने ॥
					
					
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