आषाढ़ का एक दिन | Aashadh Ka Ek Din

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Aashadh Ka Ek Din by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दोनों (कालिदास और मल्लिका ) अपने-अपने जीवन-पथ पर चलते हुए वाल्यकाल की स्मृति जागरित करते रहते है । इस प्रकार जीवन-यात्रा को सुखद बनाने में एक- दूसरे के जीवनम दोनों की अनुपस्थिति जीवन-संवल का कायं करती है। प्रेम की ऐसी निमंल धारा सुरसरि के समान पाठकों के मन को पावन बना देती है। महाकवि की जीवन-गाथा के धुंधले चित्रों को स्पप्ट करनेवाला यह नाटक ग्राद्योपान्त पाठक को रसघारा में आप्लावित करता चलता है । समस्या-नाटकों के समान इसमें तीन अंक है और प्रत्येक अंक का पर्दा उसी एक ग्रामीण बाला के निधन ग्रह का दर्शन कराता है । ग्राम्य जीवन में उज्जय्रिनी का वेभव पहुंचकर जो उत्सव का अवसर प्रस्तुत कर देता है वह एक निराली छटा का द्योतक बन जाता है । आज यह समस्या है कि कलाकार को राजप्रश्नय स्वीकार करने में आपत्ति होनी चाहिए या नहीं ; राजप्रश्नय॒ कलाकार का विकास करता है या ह्ास । इस नाटक में इस समस्या पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। यदि कलाकार अपने ग्रभावों की पृष्ठभूमि को आंखों से ओभल न होने दे और उसकी हृष्टि राजवंभव से चका- चौधनटोजाए तो कलाकार राजप्रश्रयके कारणा प्राप्तं सुखमय जीवन में अभाव- मय जीवन से कहीं अधिक उदात्त रचना कर सकता है । कालिदास का जीवन इसका प्रमाण है। उन्हें अपने अ्रभावमय जीवन से प्रेरणा मिली किन्तु उस प्रेरणा से लाभ उठाने का अवसर उन्हें उज्जयिनी में ही मिला, जहां उनकी कला के पारखी विद्यमान थे ; जहां उनके नाटक अभिनीत हुए और जहां से उनकी रच- नाओों का प्रसार हो पाया। समस्या-नाटकों का आजकल प्रचार बढ़ गया है। पर किशोर अवस्था के कोमल मन को शक्ति प्रदान करनेवाले उत्तम नाटकों का हिन्दी मे प्राय: श्रभाव है। यह नाटक इस श्रभाव की पूर्ति करता है और छात्र-छात्राओ्रों के मन पर उदात्त संस्कार छोड़ जाता है। आशा। है कि विद्यार्थियों में इसका प्रचार बढ़ेगा और इसके अभिनय से दशको के चित्त का संस्कार होगा । इस नाटक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि श्ंगार के मलिन रूप की इसमे कही भी गन्ध नही । एक वाक्य भी ऐसा नहीं जो पाठक के चित्त को उच्चभाव॑ को ओर ले जानेवाला न हो । इन्ही गुणों के कारण इसे सर्वश्रेष्ठ नाटक होने का गौरव प्राप्त हुआ है।




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