पैर तले की जमीन | Pair Tale Ki Zamin

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Pair Tale Ki Zamin by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अब्दुल्ला : हा, कल तक यही न बैठे रहना है तुझे । अब जाकर लाना नही है उसे'*'“इसकी ग्रुड्डों दीदी को ***स्विमिंग पूल से ? नीरा : वह खुद ही आ जाएगी अभी। गीले कपडे बदलने गई है बहा । अब्दुल्ला : तो अत्र तक क्या वह गीले कपड़ों मे ही*** नीरा : तुर्म मतठव ? तू मुझे पानी का गिलास बयों नही देता ? अब्दुल्ला : पानी-बानी का गिलाम नही मिल सकता इस वक्‍त 1 नोरा : पानी का गिलास क्‍यों नहीं मिल सकता ? नीरा पलछ-भर अब्दुल्ला को देखती रहती है, फिर नियामत की तरफ देखती है, फिर गिलास खुद ही खोजने ठगतो है । पण्डित : सुना झुनझुनवाला-“'पुल टूट गया है ! (हल्की हूंती के साथ) तव तो मौका ही इथर बैठकर पीने का है। नही ? अठदुल्छा इस बीच ताछे को ठोंक-पीटकर बन्द करने की कोशिग करता है, पर वह नही बन्द होता, तो उम्र लठटकता छोड़कर काउटर से आगे आ जाता है । अद्गुल्ला ; मौका तो है साहब, पर पीने को कुछ नही है। बार बन्द हो जुका है । आपको जो कुछ चाहिए, वह अब उधर चल कर ही मिल सऊता है। पष्डित : मौका इधर बैठकर पीते का है, और जो कुछ पीना हो, बह उघर चलकर ही मिल सकता है। इधर बार बन्द हो घुका है, उधर पुछ ट्ट गया है । वाह ! अखबार समेटकर शेरवानी के बटन बन्द करता हुआ केबिन से बाहर आ जाता है 1 पर अभी वार बन्द वहा हुआ है ? ताला ₹




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