भारतीय दर्शन - परिचय खंड 2 वैशेषिक दर्शन | Bharatiya Darshan Parichaya vol. - 2 Vaisheshik - Darshan
श्रेणी : भारत / India, साहित्य / Literature

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.44 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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No Information available about प्रो. श्री हरिमोहन झा - Prof. Shri Harimohan JHa
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वैशेषिक द्शंन ड सवंदशन संग्रह मैं वेशेषिक दुशंन के लिये औलूक्यद्शन नाम प्रयुक्त हुआ है। यह भी संभव है कि बौद्धादि विपक्तियों ने चिद़कर वैशेषिककार के लिये उलूक की संज्ञा दी दो और यह नाम काल-क्रम से प्रचलित दो गया है। वैशेषिक को प्राचीनता--वैशेषिक दर्शन बहुत ही माचीन है। कब लोगों का मत है कि यह न्याय से भी अधिक प्राचीन है। इस मत का झाधार यह है कि गौतम-सूत्र में तथा घात्स्यायन भाष्य में वैशेषिक के सिद्धान्त मिलते हैं किन्तु कणाद-सत्र वा प्रशस्तपाद भाष्य में न्याय की कोई छाप नहीं पाई जाती । इससे अनुमान होता हैकि वेशेषिक की रचना पहले हुई और न्याय की पीछे । एक बात झौर । वेशेषिक मुख्यतः पदार्थ शात्र 006०0०प्रह् है और न्याय मुख्यतः प्रभात शास्र 8 ं86600010ूपर । मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह पहले वहिजेंगत् की ोर झुकता है। झन्तजंगत् की ओर उसका ध्यान पीछे ज्ञाता है। इससे भी यह्दी घात अधिक संभव मालूम होती है कि न्याय से पूर्वे ही वैशेषिक की रचना हुई । कणाद के समय का ठीक पता नहीं चलता। किन्तु इतना निश्चित-सा है कि बुद्धदेच और म्रहाबीर से बहुत पहले दी वैशेषिक द्शंन का प्रचार हो चला था। बोद्ध दर्शन के निर्वाए-सिद्धात पर वैशेषिक के च्रश्ततकार्यवाद की गहरी छाप है। लेन दर्शन में जो परमारुवाद है वह वैशेषिक से लिया गया है.। लंकावतार सूत्र देखने से साफ पता चलता है. कि जैन सिंद्धान्तों के निरूपण में वेशेषिक का कितना प्रभाव पड़ा है। लबितविस्तर छादि ग्रन्थों में भी इस बात के चिह्न पाये ज्ञाते हैं । च्श पे वेशेषिक दशन का उद्देश्य ---न्यायकत्ता गौतम को तरह वैशेषिक- कार भी आरम्भ ही में झपने दशन का चद्द श्य बतला देते हैं। यह उद्देश्य है निःश्रेयस वा मोक्ष की प्राप्ति । बैशेषिक दुशन का पहला सूत्र है-- अथातो घर्म व्यार्यास्यामः ध्सं की विवेचना करना ही वैशेषिक शास्त्र का प्रतिपाद्य विषय है.। अब यह पर्मं है क्या घस्तु ? इस प्रश्न का उत्तर सूत्रकार दूसरे सूत्र सें देते हैं-- यतो5भ्युदयनिश्रेयस्तिद्धि। स धर्म
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