दैनिक जीवन और मनोविज्ञान | Dainik Jeevan Aur Manovigyan

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Dainik Jeevan Aur Manovigyan by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भय की भावना १९ भय के विविध प्रकार रेते मनाविकार-परस्त व्यक्तियों की संख्या संसार सं ङ कम रहीं है जो किसी खले स्थान को देखकर भयभीत हो उठते हैँ । দু व्यक्ति अपने घर के दरवाज़े के बाहर निकलते ही नाना प्रकार पे चिन्ताओं से पीड़ित हो उठते हैं । उन्हें ऐसा जान पड़ने लगता है जैसे सड़क में चलने-फिरनेवाला प्रत्येक व्यक्ति उनके प्राण लेने फ्री घात में है। कोई अपरिचित अथवा परिचित पुरुष जब उनसे क्राई बात पूछने अथवा सुख-दुःख की बात करने के उद्दश्य से एनकी ओर आगे बढ़ता है, तो वे यह सेचकर घबरा उठते हैं कि वह्‌ व्यक्ति निश्चय ही या तो उन्‍हें कोई अशुभ समाचार सुतायेगा, या किसी गुप्त पडयन्त्र-द्वारा उन्हें हानि पहुँचायेगा। 1इस प्रकार की मनेवृत्तिवाला व्यक्ति जव तक लौटकर अपने घर के वद्ध वातावरण के एक सुरक्षित कोने में नहीं पहुंच जाता, तच तक पग-पग पर्‌ वह घोर दुश्चिन्ताओं से त्रस्त रहता है। अपने कमरे के चारों ओर से चिकें अथवा पर्दो से दैंककर जव वद्‌ गुमसुम होकर बैठता है, तव अपेक्षाकृत चेन की साँस लेता है । कुं सनाविकार-मस्त व्यक्तियों की मानसिक दशा दीक {इसके विपरीत होती है । वे किसी वद्ध वातावरण मे बेतरह । घवरा उठते है । इसी उर से ऐसे व्यक्ति कभी सिनेमा देखने । नदीं जाते । किसी वन्द कमरे में यदि कुछ ही मिनटों के लिए भी इस प्रकार की मनाभावना से पीड़ित व्यक्ति के रहना पड़े, तो ` वह्‌ आतंक से पागल-सा हो उठता है | कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो कुछ निरीह प्राणियां--जैसे कुत्ता, विल्ली, चूहा, मुर्गी, घोड़ा आदि को देखकर भीत हो उठते है। छिपकली के देखकर आतंकित हानेवाले व्यक्तियों की संख्या हमारे देश में इतनी अधिक है कि आश्चर्य होता है। वहुत-से समभदार ओर शान्त-अक्ृति व्यक्ति, जिन्हें हम लोग . + के




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