सूर्यकान्त | Surya Kant
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥
* मणि रखता हूं, ब्रह्मादि वेदान्त विषयके
हैं ओर वन रहे है, उनके स्वयिता ओर अनुवादक बड़े बड़े
विद्वान हैं, उनके समक्ष मै अतपज्ञ क्या लिख सकता ह |
परन्तु जिस दर्जेका मै অন্ত हैं, उससे नीचे दर्जके भी. कदाचित
` अज्ञ होगे । जैसे पाठशालां कोई
है, कोई ककहरा, कोई गिनती कोई पुस्तक आदिं उनमें जैसा
तार त्य रहता है, वैसा ह्य सन््तोंमें भी रहता ही है। जैसे
|
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ं
॥
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' गिनती पढ़ानेवाले को
ৃ
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अंक समिय । दो का अंक तो मैने अमी
† धन्यवाद् पराप्त सजनोके पविच् चरण कमलोंमें यह सूर्यकान्त
अनेक प्रंन्थ बंन चुके
वाल्क अ आ पठता
१ का अंक लिखाते हैं वेसे ही यह एकका
पढ़ा भी नहीं, यही
का अंक गुरुजनोंको शुद्धा शुद्ध दिखाने और छोटोंकों अबु-
करण करनेको छिखा गया है | न सारे संसारको तो क्वा
पहचानूगा अभी तो मैने अपने आप (आत्मा ) को भी नहीं
पहचान है, करि पूर्वमे मँ कौन था और अब क्या हूं ओर मोक्ष
किस प्रकार होगी अथवा आगे किस योनिमें मेरा जन्म होगा।
सुभ एसे अज्ञ पुरुषे € तक जाननेवले नेवयुचक बच्चोंको
्टानेफे लिये पडी ( स्टेट ) स्प चद् चित्र -चित्रित किया है |
भोर यह चित्र ऐसे ही अधिकारियोंके ভিই में अपंण करता
¦ । यह चित्र कैसा खिंचा हो | यह. ज्ञान
नेके लिये समदर्शी `
'भाषके ज्ञानी पुरुषोंकी सेवामें उपस्थित करता हूं.
सहजन ज्ञान प्राप्त होनेके लिये इस
शिर की है, कि इसमें परमार्थं ओर अ
गल्पकौ रचना क्स
त्मदर्श दो प्रकारके
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