सूर्यकान्त | Surya Kant

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Surya Kant by शिव नारायण शर्मा - Shiv Narayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ * मणि रखता हूं, ब्रह्मादि वेदान्त विषयके हैं ओर वन रहे है, उनके स्वयिता ओर अनुवादक बड़े बड़े विद्वान हैं, उनके समक्ष मै अतपज्ञ क्या लिख सकता ह | परन्तु जिस दर्जेका मै অন্ত हैं, उससे नीचे दर्जके भी. कदाचित ` अज्ञ होगे । जैसे पाठशालां कोई है, कोई ककहरा, कोई गिनती कोई पुस्तक आदिं उनमें जैसा तार त्य रहता है, वैसा ह्य सन्‍्तोंमें भी रहता ही है। जैसे | । ं ॥ + ॥ ' गिनती पढ़ानेवाले को ৃ ্‌ | अंक समिय । दो का अंक तो मैने अमी † धन्यवाद्‌ पराप्त सजनोके पविच् चरण कमलोंमें यह सूर्यकान्त अनेक प्रंन्थ बंन चुके वाल्क अ आ पठता १ का अंक लिखाते हैं वेसे ही यह एकका पढ़ा भी नहीं, यही का अंक गुरुजनोंको शुद्धा शुद्ध दिखाने और छोटोंकों अबु- करण करनेको छिखा गया है | न सारे संसारको तो क्वा पहचानूगा अभी तो मैने अपने आप (आत्मा ) को भी नहीं पहचान है, करि पूर्वमे मँ कौन था और अब क्या हूं ओर मोक्ष किस प्रकार होगी अथवा आगे किस योनिमें मेरा जन्म होगा। सुभ एसे अज्ञ पुरुषे € तक जाननेवले नेवयुचक बच्चोंको ्टानेफे लिये पडी ( स्टेट ) स्प चद्‌ चित्र -चित्रित किया है | भोर यह चित्र ऐसे ही अधिकारियोंके ভিই में अपंण करता ¦ । यह चित्र कैसा खिंचा हो | यह. ज्ञान नेके लिये समदर्शी ` 'भाषके ज्ञानी पुरुषोंकी सेवामें उपस्थित करता हूं. सहजन ज्ञान प्राप्त होनेके लिये इस शिर की है, कि इसमें परमार्थं ओर अ गल्पकौ रचना क्स त्मदर्श दो प्रकारके




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