जैनेन्द्र के विचार | Jainendra Ki Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३२१
परमात्म-तत््वके विषयमे जनेन्धकी आस्तिकता कुछ अशेयवादियेःकी सी रै ¬ *
वे -तकसे-परमात्माक्ी सिद्ध . नहीं करना चाहँंगे। उनके ख्यारूमें तो * जोः है सो
परमात्मा है ` | उसे वे “ अस्तित्वकी शर्ते ” मानकर चलते हैं | जैनेन्द्रकी इस
मुक्ता हिन्दू मर्मियोकी-सी सारूप्य-प्रधान कातरता घुछी हुई नजर आती है'
जो अत्यधिक माननीय नहीं तो भी सर्वथा मननीय अवश्य कद्दी जा सझुती है । .
নল সন্তান ই । वे अपनी श्रद्धा किसी भी चीजे खातिर खोना नरी
चाहते, अपनी भद्धापर उ इतनी भद्धा है। वे कटा, जीवन, साहत्य,-- समस्त
विचारौका अन्तिन्दु उसी सत्य-तत्वको मानते ई । परन्तु, तो भी, वे
परमात्माको अगम सौर अशेस्न ही समझते है । स्पेन्सरने जब्र शेयवाद और
अशेयवादकी मीमासा की तब्र उसकी दृष्टि वेशानिक अधिक थी । पर जैनेन्द्रकी
आत्तिकता टाल्स्टाय या गाँधीके जैसी है जिसमें, विशानसे अधिक, फैटके
परमात्म-अध्तित्वकी नेतिक आवश्यकताका तर्क हो अधिक कार्यशील है।
यहीं जैनेन्द्रके सत्य और वास्तवके अन्तरको समझना होगा । तर्कशास्री
ब्रेडछेके “ मास और वास्तव ` म्रेथमै का गया दै किं “ वास्तवके साथ मेरा
संग्रंध मेरे सीमित अस्तित्वमें है। क्यों कि, इससे अधिक अत्यक्ष संबंधर्म में
कहाँ आता हूँ, सिवा उसके जिसे में महसूस कर रहा हूँ यानी ' यह | ? ( मास
पृ० २६ ) और यहाँ “यह ? उसी अर्थम वास्तव दै जिस अथेमे मौर कुछ
वास्तव नहीं है ”” (प० २२५ ) कुछ कुछ यही स्थिति ज्यूखियन क्से जैसे
वैशानिकने अपने साक्षात्कारशून्य धर्म ! नामक पुस्तक स्पष्ट की है। यहाँ
तक कि चेतन मनकी थ्योरी ईजाद करनेवाले विलियम जेम्स जैसे मनोवेशानिक
भी अन्ततः जाकर जन्र जब रहस्यवादी बने हैं, तब तब यह जान पड़ता है कि
वैज्ञानिक अयवा तार्किक घुद्धि ही सत्यकी समग्रतासे आकणछित करनेका मार्ग नहीं।
उसे साव-गम्य भी बनाना होगा। यहीं क्षर्दिकता और भ्रद्धाकी महत्ता, आपंते
आप, उद्भूत और सिद्ध हो जाती दै ।
यहाँ जनेन्दके समशटिवादके विषयमे एक शब्द कहना जरूरी होगा। जैनेन्द्रके
समष्मिधर्मे आत्म-तत्तका न गौण माना गया और न झुलाया ही गया है। या
कुछ सुधारकर कहें तो सब “आत्म-ब्रोघमेस ही समष्टि-बोघ जाग्रत होगा ऐसा माना
गया है। “ जिघर देखता हूँ उधर तू ही.तू है ” जैसी स्वोत्ममावकी হি
पहुँचनेपर मोक्षका, यानी अध्यात्मका, महत्त्वशाली मसला अलग या दूर नहीं रह
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