व्यष्टि अर्थशास्त्र | Vyashti Arth Shastra

Vyashti Arth Shastra by लक्ष्मीनारायण नाथूराम - Lakshminarayan Nathuram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यष्टि अर्थशास्त्र ग जग गा का पसपसनसयनसप्ासवणासतमससमिलसतसविरिसमकसन के रूप में अर्थशास्र का कार्य समस्याओं के कारणों का पता लगाना और उनका विश्लेषण करना रोता है। यदि सैद्धान्तिक निप्कर्षो के बारे में कोई मतभेद उत्पन दो जाये तो तथ्यों (किधिड) वा उपयोग करके उन्हें दूर करना सभव होता है। आदर्शात्मक विज्ञान के स्प पें अर्वशास्र भले व यु का निर्णय करता हैं। भले व बुरे का निर्णय एक मूल्य सम्बन्धी निर्णय (ध्वाप८-नूपतडण्टण) कहलाता है। इस म्कार के निर्णय पर दार्शनिक, साम्कृतिक, धार्मिक व नैतिक विचायें का प्रभाव पड़ता है। विभिन व्यफित्तयों के पते व बुरे के सम्मन्प में विभिन्‍न प्रकार के विचार हो सकते हैं और आय होते भी हैं। आदर्शात्सक कथनों के सम्बन्ध में पाये जाने वाले मतभेदी को तथ्यों का सहारा लेकर दूर नहीं किया जा सकता! जैसे भारत में गो वध को अधिकाश हिन्दू चुत मानते हैं। इसके पोठे लोगों की धार्मिक भावनाओं बा प्रश्न आता है। अत “क्या होना चाहिए' का निर्णय व्यविन की भावनाओं पर आधारित होता है। इसमें मतभेदों वी ज्यादा गुजाइश टोती है और ठनको मिटाना भी बहुत कठिन होता है। हमारे देश में “क्या होना चाहिए को लेकर विभिन्न आर्थिक प्रश्नों पर मतभेद अकट स्ये गये हैं, जैसे भारत में कुछ व्यक्तियों के अनुसार, 'समाजवाद' स्थापित किया जाग चाहिए तथा कुछ के अनुसार देश को “पूँगीवाद' वी हफ ले जाया जाना चाहिए। बुक विचारों के अनुसार भारत में शराबबदी होनी चाहिए तथा कुछ के अनुसार नहीं होनी चाहिए। इसलिए “क्या होना चाहिए और “क्या नहीं होना चाहिए' के निर्णय “बहुपा मूल्य सम्पस्धी निर्णवों (मत्ते व बुरे के सम्बन्थ में प्रचलित सामाजिक धारणाओं) सै अभावित होते हैं और इन पर व्यक्तिगत भावनाओं, सामाजिक व राजनैतिक विचारों, आदि का अधिक प्रभाव पड़ता है । यहा यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वास्वदिक अर्थशास्रर व आदर्शात्मक अर्थशास्र के आधार भिन्न भिल होते से हम इनमें एक दूसे पर नहीं जा सकते । उदाहरण के लिए गो वष का मैद्धान्तिक विश्लेषण करने में यदि यह निष्कर्ष निकले कि भारत में आर्थिक दृष्टिकोण से गो वध उचिन है हो भी सास्कृत्तिक पाम्पताओं व धार्मिक भावनाओं वा विषय होने से इसे देश में आसानी से समर्थन नहीं मिलेगा। अब जश्न उठता है कि क्या वास्तविक अर्थरात्र के विद्यार्थी को “यह दोना चाहिए शद्ध को देखकर चौंक जाना चाहिए और उस क्षेत्र में प्रवेश हो नहीं करना चाहिए। रिचर्ड जी लिप्से व के अलक क्रिस्टल वा मत है कि उसे आदर्शात्सक कनों पुण्ण्ाएआफाश्ट डॉट्फ््टगाउ) वी. जाय चार्स्तीवक अ्धशास में करना चाटिए। जैसे दपर्ुक्त उदाहरण में “गो वष के अर्थशास्र” (८८०४०त०5 0 ८0र्इॉ4एट्रपिटा) को निर्माण किया जाना चाहिए! उसे इन प्रश्नों का मैद्धान्तिक अध्ययन प्रस्तुत करना चाहिए कि अमुक मात्रा में गायों के होने से देश में दूध वी पृरठिं पर अमुक अभाव पड़ेणा, अमुक माता में घास चारे आदि की माग होगा, इत्यादि । हो सकतों है वि सैद्धालिक विवेचन से आगे चलकर लोग उस विपय से अर्थरास्र यों ज्यटा समझने व स्वेका




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