भरतपुर महाराजा जवाहरसिंह जाट | Bharatpur Maharaja Jawahar Singh Jat

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Bharatpur Maharaja Jawahar Singh Jat by मनोहरसिंह राणावत - Manohar Singh Ranawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श प्रारम्मिक विवेचन बना जाट श्रौर उनका प्रदेश यह जाट जाति देश की निधि है । वह देश का भरण-पोपण भी करती है घ्रौर रक्षा भी करती रही है । जिस कुशलता से यह खेत में हल घला सकती है उसी वुशलता से युद्ध-भूमि में यह तलवार चलाना भी जानती है । साहस वीरता हृढ़ता श्रौर परिश्रम में वह किसी से कम नहीं है । यद्यपि सी० वी० वैद्य हरवर्ट रिजले ई०वी० हैवल श्रौर काटूनगों श्रादि श्रनेका प्रमुख विद्वाद्‌ शारीरिक बनावट भाषा तथा रीति-रिवाज के श्राघार पर जाटों को प्राचीन श्रार्यों का ही वंशज मानते हैं तथापि जाट शब्द की उत्पत्ति के विपय में श्रभी तक विद्वाद्‌ मतेवय नहीं हैं । यूरोपीय इतिहासकारों के श्रनुसार जेटि जाथ शूट श्रादि शब्दों से जाट शब्द की व्युत्वति हुई । शास्त्री की पुस्तक जठरोत्पत्ति के श्रनुसार जठर का विगड़ता शब्द जाट रह गया । लेकिय चासूनगों रस उचित नहीं मानते हैं । जो भी हो यह तो स्पप्ट है कि जाट शब्द रंसा से १०० वर्ष पुर्व भी संस्कृत पुस्तकों में स्थान पा चुका था 15 इस विपय में कोई भी प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध नहीं है कि भारत में जाटों की दिभिन्न शाखाएं थ्रपने वतंमान निवास स्थानों पर कव श्ौर किस प्रकार पहुँची । वर्तमान काल में ये हिमालय की तलहटी से पश्चिम में सिन्घ नदी तक पूर्व में गंगा नदी से लेकर हुंदरावाद तक दसे हुए हैं । हैदरावाद से श्रजमेर श्रौर श्रजमेर से एक सीधी रेखा भोपाल तक खींची जाय तो उनदी झ्रावादी की दक्षिण तथा सन गदर पु दे 1 पु ० पु० ८३ जादूस ० पु ६-४३ 211. लग ० व रथ




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