योग आसन एवं साधना | Yog Aasan Avam Sadhana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.51 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ सत्यपाल - Dr. Satyapal
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श्री ढोलनदास अग्रवाल - Shree Dhoaldas Agrawal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शरीर रचना 3 और अन्य कोमल अंगों की रक्षा के लिए मांसपेशिया होती हैं जिनसे शरीर की सुडौलता बनती है। इन मांसपेशियों के ऊपर चर्वी वसा होती है और उससे ऊपर त्वचा जो बाहर से शरीर पर दिखाई देती है। मांस का यह विशेष गुण है कि यह सिकुड़ कर मोटा और छोटा हो जाता है और फिर अपनी पूर्व दशा को प्राप्त कर लेता है। मास के सिकुड़ने को संकोच और फैलने को प्रसार कहते हैं। यतियाँ हमारे शरीर में दो प्रकार की गतियां होती हैं - १. वे जो हमारी इच्छानुसार होती हैं और हो सकती हैं जैसे चलना फिरना बोलना हाथ उठाना भोजन चबाना आदि। ये इच्छा अधीन गतियां कहलाती हैं। र. वे जो हमारे बस में नहीं हैं हम उनको अपनी इच्छा से रोक नहीं सकते और न जब वे रुकी हों तो चला सकते हैं। हृदय धडकता रहता है हम उसे बृंद नहीं कर सकते। आंतों मे गति होती रहती है जिसके कारण भोजन ऊपर से नीचे को सरकता रहता है। प्रकाश के प्रभाव से हमारी आख वी पुतली सिकुड़ कर छोटी और अधकार के प्रभाव से फैलकर चौड़ी हो जाती है। ऐसी गठिया इच्छा के अधीन न होने के कारण स्वाधीन कही जाती हैं। रक्त-संस्थान फुफ्फ्स और हृदय + मनुष्य का हृदय उसकी बद मुट्ठी से बहुत कुछ मिलता -जुलता है और वह छाती मे लाई तरफ स्तन के नीचे स्थित है जिसे अवसर तेज दौडकर आने तथा घबराहट के समय तेजी से धडकते अनुभव किया जाता है। सारे शरीर को हृदय से रक्त देने तथा वहा से वापस हृदय को लाने के लिए दो प्रकार की नलियां होती हैं जो सारे शरीर मे फैली रहती हैं इनमें कई तो बाल से भी बारी क होती हैं। रक्त को ले जाने वाली नलियां धर्मानयां कहलाती हैं और अशुद्ध रक्त को हृदय मे वापस लाने वाली नलियां शिराएं कहलाती हैं। हृदय की दाहिनी ओर दाहिना और बायी ओर बायां फेफडा है। हृदय एक सौत्िक ततु से निर्मित आवरण से ढका रहता है। यह आवरण एक थैली के समान है जिसके भीतर हृदय रहता है। इसको हृदय कोय कहते हैं। हृदय मांस से निर्मित एक कोष्ठ है जिसके भीतर रक्त भरा रहता है। यह रस खडे मांस के परें द्वारा दाहिनी ओर दो कोठरियो मे विभक्त है। इन दोनों कोठरियो आपस में कोई सम्बन्ध नही है। प्रत्येक कोठरी.के ऊपर-नीचे फिर दो भाग हैं पतले-पतले किवाड़ों से बने हैं। ये किवाड सौचिक तंतु से निर्मित हैं और इ भ्र५५९
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