उत्तमी की माँ | Uttami Ki Maa

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Uttami Ki Maa by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्तमी फी मां उत्तमी के पिता बाबू दीनानाथ জলা की मृत्यु चालीस वध की अवस्था में हो गद्दे थी। परिवार-बिरादरी और गल्ली-मुहल्ले के सभी लोगों ने उनकी असमय, भरी जवानी में मृत्यु पर शोक किया और उत्तमी की मां के प्रदि सहानुभूति प्रकठ की; परन्तु विपत्ति का कितना बढ़ा पहाड़ बेचारी विधवा पर टूट पढ़ा था, इसे तो आहिस्ता-आ्राहिस्ता उसी ने जाना | बाबू दीनानाथ का जड़का ब्रिशन तब एफ० एस० सी» में पढ़ रहा था | उत्तमी की सयाद एक वषं पटले, तेरह वपं की श्राय में, करमचंद सर्राफु के लड़के जयकिशन से दो चुकी थी । करमचंद सेठ को पक्षी केवल अच्छी जात ओर उत्तमी का िलतती कली जेसा रूप देल कर ही संवुष्ट हौ गई थी। बाबू दीनानाथ खन्ना के यहाँ से बड़े मारी दाज-दहेज की आशा तो नहीं थी, परन्ठ उनके ঘহান की प्रतिष्ठा तो थी | उनके दादा और पिता दोनों के समय ही पउच्ची-गत्ली? के खन्ना ज्लोगों का बड़ा नाम था। उत्तमी को सगाई के समय लड़के वालों ने कहा था--“ब्याह की कोई जल्दी नहीं है। हमारा लड़का মী पट्‌ रहा है | कम-से-कम बी० ए.० तो पास कर ही ले |” विधाता ने उत्तमी की माँ के लिये घथ्नाओं कान जानै कंवा व्यूह रचा था | उसके पति की मृत्यु के नी मास बाद लाहौर में शीतला का मयंकर प्रकोप




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