चक्कर क्लब | Chakkar Club

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Chakkar Club by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य, कला और प्रम ] १७ सब्र का बाँध टूट गया । क्लब के एक मलेसानुस सहायक भेम्बर के घर बराम्दे में ही उन्हें एकत्र होना पड़ा । यह सजन भलेमानुस इसलिये है कि इनके यहाँ एक पुराना तल्त है और कुष्ठ मेदि षडे रहते ईै। मेहमानो के सम्मान फे विचार से गहपति ने किसी-न-किसी तरह तेल में छु की घुघुनी का प्रबन्ध किया | बिना दाँव के ताश खेलने की भी तजबीज़ की गई पर॑तु उसमें किसी का मन न लगा । प्क सजन को शायद बरस भर से बिछुड़ी अपनी युवती पत्नी की याद ने सताया | श्रपने घुटनों का आलिज्ञन फशर कुछ विस्मृति के से भाव में उनके मुख रो मिकल गया, “आज जो घर पर होते...“ उनकी इस दर्द भरी कराइट को सुन उनकी बग़ल में बैठे सज्ञन ने किलकारी भरकर कहा--“बाहरे पहद्धे' ““““झाज जो घर पर शेते ““ शह श्राज जो धर पर हते . !” दो तीन दफ़े वे दोहरा गये और फिर स्वयं ही उनकी आँखें किसी कल्पना या स्मृचि की ओर चल्ली गईं | कुछ खोये से वे बेठे रहे | इनकी बात को उठाया तीसरे सजन ने, “आज जो घर पर होते”? । शब्दो को तौलकर वे बोले, “आज ''जो”“'घर “पर होते ( ***** हि समस्या पूर्ती की जाय (९? समस्‍या पूर्ति की कोशिश की गई। किसी ने कद्दा, “आयरे षने- घने बरदवा, सजनी सूनी परी सेजवा |”' और आगे न कह सके | किसी ने कहा “मन गोरा तरफ नन्दी-नन्दीं बुदिर्था “° श्रौर रह गये ) मकान नामधारी कच्ची इंटों के इस चौखटे के सामने जहाँ तत्वत पर घकर कब का सत्संग जम रहा था, ज़रा दाईं श्लोर को एक मन्य मकान है। दो मंजित का, नये ढंग का नया मकान, सीमेण्ट से पुता हुआ । ऊँची कुर्सीदार उसका नीचे का बरामद लाख रंग की टाइल से সন্ধা है। बरामदे की सीमेशट की बनी घंत्नी से गमलों में लटकनेवाल्ली ভি সাপ জী हैं. । णीन फेः सर्पैः छी स्विदि चणा स रवली हें ।




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