भस्मावृत्त चिन्गारी | Bhasmavritt Chingari

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Bhasmavritt Chingari by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भस्माइत्त चिन्गारी ] १५ भाव बढ गया । कलाकार की निष्ठा के प्रत्यक्ष उदाहरण से स्वीकार करना पडा, कला जीवन से भी ऊँची वस्तु है । बेशक साधारण जन की पहुँच वहा तक नही, परन्तु उस कला का अस्तित्व है अवश्य । सांसारिक स्थूलता मे लिप्त रहकर हम उस कला के अठीन्द्रिय, सूक्ष्म सन्‍्तोष को पा नही सकते | यह न्यूनता कला की नहीं, हमारी अपनी अयोग्यता ই 1 वह कला उसी प्रकार अनादि, अनन्त है जेसे आत्मा ओर अपोरुषेय शक्ति का अ्रस्तित्व । आप्त पुरुषो के अनुभव से ही साधारण पुरुष उसे समझ सकते है । कलाकार का सन्तोष इसका अकाव्य प्रमाणं था । उस कला की अर्चना मे कलाकार के परिवार का बलिदान इस सत्यका प्रमाण था कि कला से प्राप्त सन्‍्तोष जोवन-रक्षा की भावना से भी अधिक भ्रवल ओर महान है । में स्वयम कला की वेदी से दूर हूँ | सांसारिकता की अडचनो से छुनकर आये कला के प्रकाश की सूच्म क्रिणो को ही सै पा सका हैँ । में कला की आराधना उसके पुजारी के प्रति अपनी श्रद्धा ओर आदर से ही कर सकता था, जैसे यजमान पुरोहित द्वारा यक् कार्य का घुरय प्राप्त करता है। भेरी उस श्रद्धा का स्थुल रूप था, कला, के पुरोहिते कलाकार की सेवा के लिए तत्परता ! ১৫ ॐ ১৫ कलाकार की खी शनै. एने बलि होते होते एक दिन नचजात शिशु को छोढ चल बसी । कलाकार शोक के आधात से कुछ दिन संशाहीन रहा । उसके पुत्र को ख्री के भाई ले गये । संज्ञा लोटने पर कलाकार के होठो पर एक झुस्कराहट आ गई । उसने एक ओर चित्र चनाया--एक प्रकाण्ड हिमस्तप की दुरारोहं चटाई पर एक क्षीण शरीर तपस्वी चट रहा हे । उसको जीवन संगिनी चढ़ाई से क्लान्त ओर जर्जर हो गिर पडी हे 1 तपस्वी यात्री दुचिधामे हे! वह धमकर श्रपनी बरफ़ पर गिर पडी निष्पाण संगिनी की ओर देखता है । दूसरी ओर हिसस्तूप




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