योगी और अधिकारी | Yogi Aur Adhikari

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Yogi Aur Adhikari by आर्थर कास्लर - Aarthar Kaaslarरमेश सिनहा - Ramesh Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अचानक परिवर्तित होने का असाधारण मामला होगा) या फिर सम्बंध फिर से नहीं जुड़े--तत्र वह मृत नाल चक्करार गेडुरी का रूप धारण कर लेगी और अपने मालिक का गला दबोच देगी। यह उन भूतपूर्व क्रातिकारियों का समान रूप से असाधारण मामला है, जिनकी आत्मा घुट कर मर गयी थी। वे मास्को के मुकदमो में सिनोज्यू के समान शवत॒ल्य अथवा लावाल और डोरियट के समान पैशाची ओर दुरात्माठत्य अथवा वामपथीय नोकरशाही के समान नपुसक तथा सूखे हुए रूप में उपस्थित हो सकते हैं। रोजा लक्जेम्बगें के बाद कोई ऐसा पुरुष अथवा नारी नदीं हई है, जिसमे ‹ सागरवत्‌ भावना ` सर कायै का वेग साथ-साथ हो। दुभोग्यवश इन प्रक्रियाओं का वर्णन करने के लिए अभी तक इमारे पास वैज्ञानिक शब्द नहीं हैं। इतिहास मे “चेतना-सम्बधी तत्व” को समझने के लिए ये प्रक्रियाएँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इसी से जितनी गम्मीरतापूर्वक इनका वर्णन करने की चेष्ठा की जाती ह, उतना दी वह अस्पष्ट भौर काल्पनिक हो जाता है। कितु उससे श्रेष्ठ के अभाव में उसी का उपयोग होता है। मनोविज्ञान के जो तीन मुख्य समकालीन सूल हैं, उनके बृहत्‌ साहित्य मे इस परिबतेन के एक भी मामले का इतिहास नहीं मिलता यथा एक क्रातिकारी का मानबद्वेपी मोर रहस्यमय बनने का, ज कि इतिहास--चाहे वह प्राचीन काल का हो अथवा वर्तमान काल का-के पन्ने एसे उदाहरण से भरे पडे दै] अन्य व्यक्तियो की वुल्लना मे इस प्रश्न के अधिक निकट जुग पहुँचा है। अतश्चेतना की उसने जो व्याख्या की है, उसका “नाल? से अधिकाधिक साहश्य है, कित॒ दूसरे परीक्षण के लिए, वह मनुप्यो की सर्वाधिक अयोग्य कोटि को अधिक पसद करता है, यथा धनी अधेडो को। और, ऐसा वह कुछ कारणो से करता है। अगर उसे अपने मरीजों का चुनाव जर्मन या रूसी अम-शिविरों मे बसनेवाली मनुष्य-जाति से करना होता, तो उसका सिद्धात सिर्फ केवल अपयांत ही प्रमाणित नहीं होता, बिक उसे अपनी प्रणाली में इतने नये निणोयक तत्वों को शामिल करना पडता कि उसकी परिभाषा ओर परीक्षण-परिणाम दोनो ही क्षार हो जाते । अधिकारी के वर्णपटीय उल्लट- फेर एक मनोवैज्ञानिक के लिए. समस्या-रूप हैं। वर्णपट के अधिक वेतरतीत्र मध्यवर्ती पद्यो की ओर ध्यान देने से हमे ज्ञात होता है कि रहस्यमयी धारा के प्रति उनकी प्रतिक्रिया रहस्य प्रकट कर देनेवाली है। वामपंथियों की क्रमबद्ध पराजय, पुराने दल और उनके पस्त नेता, उनकी १५.




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