सीधी चढ़ान भाग - 2 | Sidhi Chadhan Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बठ हैं, वे सब इस पोर्वा(्य को उनके मध्य पाँच बजे की चाय पीते देखेंगे, ता वा सोचेगे ? परन्तु आतिथ्य के समय भी मै अपने मन्त्रि-पद को भूला नही भौर राज्य से लम्बे समय तक अनुपस्थित रहने के विरुद्ध मैने खसे वात्सल्य-भाव से समाया ।**१ सचेत श्रौर लोकप्रिय राजनीतिज्ञ तथा विदव-यात्रा करके दूरदर्शी वने हए भ्रग्रगण्य इप्त भारतीय के लिए स्वतन्वता प्रेम का श्राडभ्बर रचने वाले मालं केतिरस्कार की क्या गिनती थी । श्रस्हाय भारत ने ऐसे कितने ही अपमान के कडवे घूंट पिये थे, ओर यह तो उस समय का बहुत ही उदार माना जाने वाला श्रग्रेज़् था । बाद मे महाराजा साहब के साथ मेरा परिचय कुछ बढा । १६३४ मे उनके ही रक-महोत्सव के अवसर पर बडौदा कालेज के भूतपूर्व ग्रेजुएटो ने उन्हें प्रीतिभोज के लिए बुलाया। उस समय उचका स्वागत करते हुए मैंने अपने हृदय के भाव इस तरह व्यक्त किये ` जब हम कॉलेज में आये थे, तब रूस-जापान युद्ध नही छिडा था, वंगभग नही हृश्रा था, राष्ट्रीयता ने प्रचण्ड स्वरूप धारण नही किया था। उस समय हमने महाराजा मे भारतीयता, बुद्धि, चारित्य श्रौर राजनीतिक्ञता की विजय देखी थी और प्राज तीस वर्षों की कठिन कसौटी के बाद भी हम इनमे इनका जीता-ज गता उदाहरण देख सकते है कि भारतीय राज्य- कला-कौशल किस सीमा तक जा सकता है'** ऐसे अवसरो पर भी मुझसे विनोद-भरी चुटकी लिये बिता नहीं रहा जाता । इससे कभी-कभी गलतफहमी भी हो जाती है भर उस समय मुझे इसका ठीक-ठीक अनुभव हुआ । मैंने भाषण के बीच मे कहा-- “मैं भ्राज जिनका स्वागत कर रहा हूँ, वे केवल एक राजा ही नही हैं, ग्पितु भ्र्वाचीन भारत के बडे-से-बडे कुशल शासक भी है । पृत्त के पाँव पालने मे ही नजर आते हैं। विटिग्टन के लिए कहा जाता था कि जिस कला से उसने बचपन में बिल्ली पाली, उसी कला द्वारा उसने लन्दल २ ७०7०४ २९००॥९८४००४, ४०, 1, 7. 187 बच्चई की गलियों में १७




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