प्रकृति पर विजय | Prakrati Per Vijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदिम मनुष्य & ` ये जों केवल पत्थर के ही ओज़ार काम में लाना जानते थे | ये लोहे के औज़ारों से बिवकुल परिचित न थे। हज़ारों वष तक मनुष्य के अस्-शाख, भारे, चाक्र, गदा, बल्लम आदि पत्थर के ही थे ओर उस समय के आदिकालोन मनुष्यों ने चक्रमक पत्थर का भी प्रयोंग करना प्रारम्भ कर दिया था । 'पाषाण-युग' के वाद्‌ बड़ो अद्भुत उन्नति का युग प्रारम्भ हुआ इस का नाम श्वातुयुग है। सब से पहले तांबा ` और रांगां इनन्‍्हों दो धातुओं का आविष्कार हुआ। ये दोनों धातु प्रायः शुद्ध पायी जातो हैं। इनका रंग और चमक दमक ऐसो मनोमीहनो थी कि आदिम मनुष्य ने वड़ो प्रसन्नतां से इनका व्यवहार शुरू कर दिया । इनका गछाना तथा इनके द्वारा शखाख वनाना भौ सहर था} इतना हौ नहीं जितनी दैर मे रोहे का पक अख्र तेयार हो पाता था उतनी हो देर में तांबे के करीब १०० अस्त्र बन सकते थे। परन्तु इनमें एक कठिनाई मालुम पड़ी । इन धातुओं को पिघला कर जब इनके अस्र तैयार किये ,गये तो ये बहुत मुलायम निकले । इन पर न धार रक्ली जा सकतो थी ओर न इन से हिंसक ज्ञीवो' का शिकार किया जा सकता था। ये बहुत जब्द घुड़ कर टूट जाते थे। रांगा तों सबसे गया गुज़रा निकला | अकस्मात ही इन दोनों धातुओं को मिला कर शखरा बनाने की विधि खूक पड़ी। इसी लिए इस युग का नाम कांसा-युग! पड़ा। प्रायः संसार भर में मानवी सभ्यता का इतिहास इसो प्रकार आरम्भ हुआ है परन्तु ऐसे भी प्रदेश




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