व्यावहारिक सभ्यता | Vyavaharik Sabhtya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vyavaharik Sabhtya by गणेशदन्त शर्मा 'इन्द्र' - Ganesh Dant Sharma 'Indra'

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गणेशदन्त शर्मा 'इन्द्र' - Ganesh Dant Sharma 'Indra'

Add Infomation AboutGanesh Dant SharmaIndra'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
छं পালি व्यवहार वस्तु को चोरी नहीं करना चाहिए । हमेशा “परधन भूख समान समभाना चाहिए। क्योंकि चोरी को अधार्मिक कृत्य माना है। किसी भी मजहब में या मत में इसे अच्छा नहीं कहा है। यह बड़ा ही न्ध्य एवं नीच कार्य है । इसका परिणाम सी वदत बुरा होला दै 1 ( ११ ) भीख माँगना बहुत बुरा काम है। अपनी कमज़ोरियों को प्रकट करके दूसरे के उपाजित द्रव्य में से बिना किसी श्रम के कुछ भी प्राप्त करना बुरा है । द सब से रूघू है मांगिबो या में फेरन सार । वकि पै जात ही मए वामन तन करतार ॥।” ॥ -34. +. भारत में भिखमंगे बहुत बढ़ गये हैं ओर बढ़ते ही जा रहे हें । ब्राह्मणों ने तो इसे अपना धर्म मान छिया है । किन्तु “दान” ओर _“मिश्ला” में अन्तर है। दान वह है जो बिना माँगे प्राप्त हो | भिक्षा वह हैं जिसे माँगना पढ़े । भिक्षा सी कक्न-से-कम उतनी ही लेनी चाहिए जिससे कि निर्वाह লং রী सके। पहले के ब्राह्मण ऐस ही ओ, केवर उदर-पोषण के छायक ही वे दान स्वीकारते थे। यदि कोई अधिक दे भी देता तो वे उसे किसी सत्कार्य में लगा देते या दूसरों को दे देते थे । परन्तु आज छोग स्वार्थी होकर जितना प्राप्त किया লা सके उतना ज़बरदस्ती लेने की कोशिश करते) 28৭... कमाने खाने योग्य होते हुए भी, भीख या दान पर अपना




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now