प्रेमी - अभिनन्दन - ग्रन्थ | Premi - Abhinandan - Granth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रेमी - अभिनन्दन - ग्रन्थ  - Premi - Abhinandan - Granth

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
आयोजना और उसका इतिहास श्रद्धेय नायराम जी प्रेमी को अभिनंदन-ग्रंथ भेंट करने का विचार वास्तव में उस दिन उदय हश्रा, जव आदरणीय पं ० वनारसीदास जी चतुर्वेदो न श्रौ रासलोचनशरण विहारी कौ स्वणं-जयंती के श्रवसर पर प्रकाशित और श्री शिवपूजनसहाय जो द्वारा सम्पादित जयंती-स्मारक-प्रंथ” आगरे के साहित्य-भण्डार' में देखा। लौट कर उन्होंने वह ग्रंथ पटने से मंगाया और हमें दिखा कर कहा कि ऐसे ग्रंथ के भ्रधिकारो प्रेमी जी भी हे, जिन्होंने हिन्दी को इतनी ठोस सेवा की है और जो विज्ञापन से सदा वचते रहे हं । इसके क्छ ही दिन बाद जैन-पत्रों में समाचार छपा कि जैन-छात्र-संघ (काशी ) को ओर से प्रेमी जी को एक अभिनंदन-ग्रंथ भेंट करने का निर्चय किया गया है । इस पर टोकमगढ़ के साहित्य-सेवियों की ओर से एक पत्र उक्त संघ को भेजा गया, जिसमें संघ से हम लोगों ने अनुरोध किया कि चूंकि प्रेमो जो हित्दी-जगत्‌ की विभूति हें, अत: यह सम्मान उन्हें समस्त हिन्दी-जगत्‌ की ओर से मिलना चाहिए । इस श्राशय का एक वक्तव्य हिन्दी के प्रमुख पत्रों में प्रकाशित हुआ। छात्र-संघ ने हमारी वात को स्वीकार कर लिया। अभिनंदन के संबंध में हिन्दी के विद्वानों की सम्मति लो गई तो सभो ने उसका स्वागत करते हुए अपना सहयोग देने का वचन दिया । कतिपय विद्वानों और साहित्यकारों के उद्यार यहाँ दिये जा रहे हे : संथिलीशरण जी गुप्त : “श्री वाथूराम जो प्रेमी के अभिनंदन का में हृदय से समर्थन करता हूँ। वे सर्वथा इसके योग्य हैं । ऐसे अवसर पर में उन्हें सप्रेम प्रणाम करता हूँ ।” पं० सुन्दरलाल जी : मेरा हादिक आशीर्वाद इस शुभकार्य में आपके साथ है ।” डा० सुनीतिकूमार चादुर्ज्या : “श्री नाथूराम जी प्रेमी के अभिनंदन के लिए जिस प्रव॑ब-संग्रह-प्ंथ के तैयार करने को चेष्टा हो रही है, उसके साथ मेरौ पूरौ सहानुभूति हं ।” पं० माखनलाल चतुर्वेदी : “श्रीयुत प्रेमी जी अभिनंदन से भी अधिक आदर और स्मरण की वस्तु हें । आपके इस आयोजन से में सहमत हूँ । श्रापने श्रेष्ठतर कायं किया हं 1 श्रो सियारामशरण गुप्त : “श्री नाथूराम जी प्रेमी को अभिनंदन-प्रंथ अर्पित करने का विचार स्वर श्रमि- नंदनोय हू । प्रेमो जो हिन्दी-भाषियों में सुरुचि और ज्ञान के अप्रतिम प्रकाशक हैं । उनका अ्रध्यवसाय, उनकी कर्म- निष्ठा और उनका निरंतर आत्मदान शअत्यन्त व्यापक हे । इसके लिए सारा हिन्दो-समाज उनका ऋणी हैं । मेरी विनम्र श्रद्धा उनके प्रति सादर समर्पित हैँ श्री जेनेंद्रकमार : 'श्रद्धेव प्रेमी जी को अभिनंदन-ग्रंथ भेंट करने के विचार से मेरी हादिक सहमति हैं श्रौर में आपको इसके लिए बधाई देना चाहूँगा। श्री व्यौहार राजेद्धसिह : प्रेमी जी को अभिनंदन-ग्रंथ भेंट करने की वात सुन्दर हैँ 1” डा० रासकुमार वर्मा : “श्रीमान्‌ श्रद्धेय नाथूराम जो प्रेमी को अभिनंदन-अंथ देने के निश्चय के साथ मेरी पूर्ण सहमति और सख््भावना है । प्रेमो जो ने हिन्दी को जो सेवा को है, वह स्थायी श्रौर स्तुत्य हं 1 ` श्री देवीदत्त शुक्ल : श्रीमान्‌ प्रेमी जो का अवश्य अभिनंदन होना चाहिए । प्रमं अभिनंदन का समारोह हौ प्रेमी जी के द्वारा हिन्दी के प्रकाशन में एक नई कांति हुई हू । वे सुरुचि के नाता साहित्यिक भी हे । री गुलाबराय : “हिन्दी के प्रति प्रेमी जी की जो सेवाएँ हे, वे चिरस्मरणोय रहेंगी। उन्दने व्यक्ति दप 1 जा कें उपयदत হা




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now