नाश का विनाश | Nash Ka Vinash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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मामा वरेरकर - Mama Varerakar
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रामचंद्र रघुनाथ - Ramchandra Raghunath
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मत्पय
प्रसृतो
सन््सयथ
दशन
मन्मय
एश
मरमय
पठ
प्रयम शरक दृश्य एक १५
किये बिता वह चेन नहीं लेती । महाराज की इच्छा है कि
वह हिमालय न जाय । जो उनकी इच्छा है, वही मेरी भी है ।
पर हम दोनो की सुनता कौन है ” अच्छा, मानलो हमने उससे
कहा भी कि हिमालय मत जा, तो कौन वह हमारी নান मान
लेगी ? जैसे-तैसे मैंने महाराज को राजी किया, तव कही वह
शान्त हुई ।
प्रजापतिजी ऐसे भिखसगो को इतना महत्त्व आखिर क्यों दे रहे
हैं, मैं कुछ समझ नही पाता । सती इतनी पगली नही कि
उस प्राचीन भिखारी को देखकर उसपर मोहित हो जाय ।
छि -छि , प्रश्न मोहित होने का नही हे । डर यह लगता है कि
वहा वह पगला या उसके अनुचर सत्ती का अपमान न कर दें ।
करने दीजिए उन्हे अपमान ' हम भी देख लेगे । इसके लिए
उन्हें उचित दण्ड देने को प्रजापति के अनुचरो मे भी भरपूर
शक्ति है । महारानीजी, आप कोई चिता न কই | इस मन्मथं
के साथ होने पर किसी भी पुरुष से सती को भय नही । (दक्ष
आता है ।) ह
मन्मथ सती श्रौर भय, ये दो शब्द एक साथ लाना कायरता
का लक्षण हैँ । मती श्रतुल प्रतापशाली दक्ष की कन्या है ।
उसे भयप्रद लगनेवाला व्यक्ति इस विभुवन में कोई नही ।
मे धी यही कहता ह । हर व्यक्ति व्यर्थ ही शकर के भय का
इतना ढिढोरा पीठ रहा है कि मुझे ऐसा लगने लगा हे, कि कही
में भी उससे सचमुच न डरने लग ।
तुम्हे ऐसा लगेगा ही । तुम में पौरुष की प्रवलता नही है या स्व्रीत्व
का आधिक्य है, यही ठीक से समझ में नही आता ।
यह कहने से क्रि दोनों वरावर है, काम चल जायगा। पर देव,
शकर क्या सचमुच इतना भयप्रद प्राणी है ?
जिसे भय का भय नहीं, उसे शकर से भय क्यो होगा ? कम-मे-
কম मैं तो शकर से जरा भी नही डरता । हिमालय के उच्चतम
शिखर पर रहनेवाले उस मनुष्य रूपी गिद्ध को देखकर, वहत
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