किसान - राज | Kisaan Raj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किसान-गुण-गाथा ` ६ ही नर से नारायण होने के लिये प्रयत्नशील है । न तो वह कोरे बरह्यवादियो की तरह अति-प्रश्नों पर माथा पद्ची ही करता है, रौर न भौतिकवादियो की तरह आत्मा-परमास्मा के प्रति अपनी श्रद्धा तथा अपना विश्वास ही खोता है । वह कमंयोगी की तरह स्वभाव नियत कमं करता रहता है । स्वधमं का पालन करते मे वह कभी नही चूकता । श्रद्धालु होता हुआ भी किसान वुद्धि की, तक की, विवेक की, स्व॒तन्त्र-चिन्तन की अवहेलना नही करता । हाँ, वह व्यवसाया- स्मिका बुद्धि को स्थिर और वासनात्मक बुद्धि को शुद्ध करने की अनिवाये आक्रंयकता को अवश्य कदापि नही भूलता । किसान चित्त-शुद्धि और सदाचार का हामी होता है क्‍योंकि वह जानता है कि वासना की दासी वुद्धि के निर्शयय कभी सही, शुद्ध और स्वतन्त्र नदी दो सकते । शुद्ध वुद्धि में ही वह मानव का त्राण अर कल्याण देखता है । आज समस्त संसार में धमं और विज्ञान के पाथक्य और विरोध के कारण त्राहि-त्राहि मची हुई है। सभ्य कहलाने वाले देश सवेनाश की सडक पर सरपट दौड़े जा रहेहै। संसारके सवेमान्य विचारक इसी कारण धमं रौर विज्ञान के समुच्चय की अनिवाये आवश्यकता अनुभत्र कर रहे है । জাজ वर्नाडशा का कहना है. कि इतिहास की भावी गति-विधि इस पर निर्भर रहेगी कि धर्म ओर विज्ञान का परस्पर क्या सम्बन्ध रहे ? धर्म और विज्ञान का यह वॉछनीय समुच्चय आम्य-सभ्यता से सुचारू




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