शिल्प और दर्शन | Shilp Aur Darshan

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Book Image : शिल्प और दर्शन  - Shilp Aur Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिव्प श्रौर दर्शन अनुभूति ऐसी प्रखर प्रतिभा एक हो दरीर-यष्टि में समस्त ब्रह्माड देख लिया अब इनकी भ्रक्षय कीति काया को जरा-मरण का भय क्या इनकी नायिका जिसके वीक्षण-मात्र से इनकी कल्पना तिलक की डाल की तर खिल उठती थी ग्रपने सत्यवान को काल के मुख से न लौटा लायेंगी इसी विराट् रूप का दर्शनकर ये पुष्प-धनुषधर कवि रति के महाभारत में विजयी हुए । समस्त देश की वासना के बीभत्स-समुद्र को मथकर इन्होंने कामदेव को नव-जन्म दान दे दिया वह शझ्रब सहज ही भस्म हो सकता है ? इन वीरो ने ऐसा सम्मोहनास्त्र देश के श्राकाश मे छोड़ा कि सारा ससार कामिनीमय हो गया एक के भीतर बीस डिब्बेवाले खिलौने की तरह एक हो के श्रन्दर सहस्र नायिकाश्रो के स्वरूप दिखला दिये । सारे देश को जादू के बल से कामना के चमकीले पारे से मढ हुए कच्चे काँच के टुकडो का एक ऐसा विचित्र अ्रजायब-घर सब जग जीतन को काम का ऐसा काय-व्यूह- शीशमहल बन दिया कि श्राय॑-नारी की एकनिप्ठ पवित्र प्रतिमा बासनाओ के असख्य रग-विरगे बिम्बो मे बदल गई--जिनकी भूलभुलैया में फंसकर देश के लिए श्रपनी सरल सुशील सती को पहचानना कठिन हो गया अर इनकी वियोग-वह्धि ने क्या किया इनकी झौवं के नेत्रो की ज्वाला-सी आह ने देश की प्राण-सचारिणी दक्ति-सजीवनी वायु को ग्रीष्म की प्रचड लू से बदल दिया सकल सद्भावनाश्रो के सुकुमार पौधे जलकर छार हो गये शान्ति सुख स्वास्थ्य सदाचार सब भस्म हो गये पावत्र प्रेम का चन्दन-पक सुख गया भारत का मानस भी दरक गया शभ्रौर उसकी सती इन कवियों की सुकीली लेखनी से उस गहरी खुदी हुई दरार मे समा गई शक्ति की कमर खो गई समस्त दुबलता का नाम अबला पड गया । ऐसो थी इनकी बीभत्स विकारग्रस्त विलासपुरी शझ्ौर इनकी भापालकानिता ? जिसकी रंगीन डोरियो मे वह कविता का हेगिंग गार्डन--वह विदव-वैचित्य--झूलता है जिसके हृत्पट पर वह चित्रित है बहत्तर ग्रन्थो के रचयिता निभ-मडल के समान देव देखन के छोटे लगे घाव करे गम्भीर तीर छोड वाले कुसुमायुध बिहारी जिन्हें तरुनाई झाई सुखद घाति मथुरा सुसराल रामचन्द्रिका के इक्कीस पाठ कर मुवत होनेवाले कठिन काव्य के प्रेत पिंगला- चाय भाषा के मिल्टन उडगन-क्रेशवदास जी तथा जहॉ-तहाँ प्रकाश करनेवाले मतिराम पद्माकर बेनी रसखान झादि--जितने नाम श्राप जानते हों श्रौर इन साहित्य के मालियो में से जिसकी विलास-वाटिका में भी श्राप प्रवेश करें सब में श्रधिवतर वहीं कदली के स्तम्भ कमल नाल दाडिम के बीज शुक पिक खजन शख पद्म सर्थ सिह मुग चर चार थ्रॉखे होना कटाक्ष करना छोड़ना चित होना दुप्त भ जता




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