नयी राजनीति | Nai Rajniti

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Nai Rajniti by लाला सीताराम बी. ए. - Lala Sitaram B. A.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्० नई राजनीति क्योंकि संक्रा सबही का लगी जय जो सोजन पान | का कीजें कंद्दि भाँति पुनि राखिय तन में प्रान आझौर यह भी कहा है-- क्रोधी. बिन सस्तोप जो ईप करडिं सकाईि | रहें सासरे बार के तिनहि न सुख जग माहि ॥ इतना खुन कर सब कबूतर जाल पर बैठ गए देखो-- ज्ञानत शास्त्र झनेऊ ज्ञन पढ़े वेद समुदाय परे लोसबस दुख महेँ सुधि बुधि सकल गवाँय ॥ फाम क्रोध बरु मोड को लोमडि गनिये सानि। लोभ न कीजिय पाप के प्रदल सुन यहि ज्ञानि ॥ झौोर सब जाल में फल गए | तब तो जिस के कहने से उतरे थे उसकों सब चुरा ला कहने लगे | कह्दा भी है-- सगुस्ा बनिय न काज़ में सघे सदे फल लेत | ज्ञा पे बिगरों काज तों अयुददि दूपन देत ॥ झौर भी. क्रोघ होत हैं लाभ से लोभदि से पुनि काम | मोह नास सब लॉथ से लॉम पाप का धाम ॥ उन लोगों का बुरा कहते देख चित्रश्रीव से कहा इनका कुछ दोष नहां | परन होत जब झापदा हितहीं कारस होय | ब्रा माँ की जाँघ में बाँघत है नित लोय ॥ झौर सोइ सित्र झापति परे करें जल सरउद्वार | जब सो कि मित्र जो बिपति महाँ चने सिखावसहार ? बिपत पड़े घबड़ाहर कायरपने का लक्षण है अब धघोरज घर के इसका उपाय सोचना साषिये | करों डकि--




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