मोहिनी विद्या | Mohini Vidhya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.64 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री गोपालराम गहमर - Shri Gopal Ram Ghammer
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ड मोहिनी विया
से नाव छोड़कर उतर पढ़े । सब यात्रियों ने अपना अपना रास्ता
लिया लेकिन सन्त सीधे सामने वाले टोले पर बैठे हुए जटाधारी
के पास पहुँच कर बोले--“'जा ! ताज तो तुमने अपना सब खो
दिया।”
वह सन्त अकचका कर इनका सुँह ताकने लगे। उनकी
बोलती बन्द रही लेकिन आँखें मानो पूछ रही थीं कि
क्या बात है ?
खड़े सन्त ने बड़ी डॉट से कहदा--'“ताकता क्या है ! तुमने
सामने की घटना देख कर ही हवा का वेग अपनी इच्छा शक्ति से
रोका । हम मानते हैं कि उस गोद के बच्चे पर तुमको तरस आयो
और अपनी शक्ति भर तुमने मनोवल खर्च करके उसकी जान
बचा ली लेकिन तुमको यह नही मालूम है कि यद्द हवा उस सिरनन-
हार की प्रबल प्रेरणा थी जो सारे जगत को हस्तामलकवत्त देखता
और सबके पालन पोषण की सुधि रखता है मैंने आसन पर वेठे
ही देखा एक जनहीन झगम्य दापू मे एक बढ़ा जहाज रेत पर चढ़
गया है। उसके यात्री खान पान की सामग्री चुक जाने से भूख
प्यास के मारे तड़प रहे हैं । बड़ी कोशिश करके उसको पानी में
नहीं ला सकने के कारण निराशा के आँसू बहा रहे थे । उन्हीं की
प्राणरक्षा के लिये यह इतनी प्रचण्ड बेग की हवा चलो थी लेकिन
तुमने अपने मनोवल् से इसे रोक कर उस ख्रो की गोद के बच्चे
का प्राण बचाया लेकिन उस जहाज के हजारों सवारों के प्राण की
परवा नहीं को अव तुम्दारो बल शक्ति यही समाप्त हो गया यह
याद रखना ।” ,
इतना सुनते हो टीले पर के साधु बहुत डरे और आसन से
उठकर उनके पाँव पकड़ने चले थे कि फिर डॉट कर वह वोले--
“बस अलग रहो ! नही जानते तुम्हारे ऐसे डरपोक को इतनो शक्ति
User Reviews
No Reviews | Add Yours...