स चि त्र चौदह विद्या सागर | Sachitr Chaudah Vidhya Sagar

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Sachitr Chaudah Vidhya Sagar by बाबू मोहनलाल माहेश्वरी - Babu MohanLal Maheshwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) जो सोते बेंठे चलते, फिरते गाते ह । अथवा आसतन्त सो बैठे, नहीं बोह रोते चिल्लाते है ॥ লী दुख महाराग कदि पावे, यासे भूठ न जानो । तासों गायन हेत गेया आसन लहि सुख मानो ॥ गायन भेद गात ) पोच भांति के गायन कहे, तिनमे सेद्‌ सब यों लहे। सिद्धा कारक अर्‌ अनुकार, अनुभावक पंचम अधिकार ॥ सिषये सकल खीख कर लेय, सिद्धा कारक किये साय । छाया काहू और की, लेतु वुद्धि बलदान । सो अनुकारक बड़ो दहै, सिद्ध चतुर शुन खान ॥ गायन अ्रकार । 'गायन तीन प्रकार के, कहै गुनी जन गाय येकल यमल सुबरन्द दहै, लच्ए कदो सुनाय॥ जो आपु ही गाके सदा, येकलं किये तादि । -जो गारे मिल्ल दो जने, यमल कहीजे ताहि ॥ -कददिये गायन चन्द्‌ सा, जो गावें मिल जूह । -रूप सुजोबन मधुरता, ये गुण अधिक समूह ॥ भरायन | छाया लागें शुद्ध की, जाने सिगरी रीति। ताको गायन कहत है, जे पंडित संगीत ॥ गायन में जे होत है, दोष बीस अरु पाँच ! (तिनके लक्षण कहत हो, जान लेहड्ु तुम साँच ॥




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