सांख्यदर्शन का इतिहास | Sankhya Darshan Ka Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.58 MB
कुल पष्ठ :
559
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द सांख्यद्शैन का इतिहास है और इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालकर इसके मददरव यो बढ़ाने में द्ार्दिक सददयोग दिया है । काशीवासी श्रीयुत डॉ० सद्ललदेवजी शास्त्री के दर्शन चिरफाल के अनन्तर अभी पिछले दिनों गुरुठूल काइ्डड़ी पी सुवर्णज्यन्ती के ्ववसर पर हुए | आाप मेरे छात्रावस्था के स॒हद हैं । आपने रुरुकुच में समय लिराल कर इस प्रन्य के बहुत अधिक भागों को ध्यान से सुना मेरी इन्छा पर रुन्देनि के सम्बन्ध में रूप से कुछ प्रशस्त शब्द लिय भेजे हैं को भूमिका के अनन्तर सुद्रित हैं । मैं इस सददयोग के लिये आपका अत्यन्त अनुगूद्दीत हूँ । यदद प्रन्थ देहली के सावंदेशिक प्रे स में मुद्रित हुझा है प्रेस के पं० ज्ञानचन्द्रजी थी ए तथा प्रेस के सब पमंचारियों का में चहुत आभारी हूँं। चिशेष बाधाओं के अतिरिक्त सब दी व्यक्तियों ने सायधानतापूर्वक इस कार्य में सहयोग दिया है। अब यह प्रन्थ मुद्दित द्ोकर विद्वान पाठकों वी सेवा में प्रस्तुत हैं। इसकी उपयोगिता की जांच पाठक स्वयं करें । यद प्रन्य आठ प्रकरणों में पूरा हुआ है नौवां अररण नामक और लिखने का विचार था । परन्तु उ्त समय लाहौर छोड़ देने के कारण वह न लिखा जासका और अब जल्दों उसके लिये जाने की श्याशा भी नहीं दै। उस प्रकरण में मध्यकाल के उन अआचार्यो का तिथिक्रम निश्वय करने का विचार था जिनका सम्प्रन्घ प्रह्तुत में विपयों से है । सांस्यविपयक चहिरिगपरीक्षारमक श्रस्तुत ग्रन्थ मूलसख्यमन्थ की भूमिकामात्र है। सांख्य के मूल सिद्धान्तों का विवेचनात्मक ग्रन्थ सांख्यसिद्धान्त नामक लिसा जारहा है झाघे से अधिक भाग लिपिबद्ध क्या जाचुका है । भगवान् की दया एवं पिद्वानों के सददयोग से शीघ्र ही उसके भी प्रकाशित कर।ने का यत्न किया जायगा । विनीत-- १६. वाराखम्बा लेन नई दिल्ली । उद्यचीर शास्त्री सौर १५ ब्येष्ठ रविवार सं ० २००७ बिक्रमी | रे चर
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