आर्यजीवन भाग 2 | Aary Jeevan Bhag 2

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Aary Jeevan Bhag 2  by पं राजाराम प्रोफ़ेसर - Pt. Rajaram Profesar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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था: श्दु “;सहसशीर्षा, पुरुष: सदसरांस! सदसपाव” इस्यादि से किया है। जहां उस विराट धरीर की अज्ञ कल्पना इस मकार की गई है- चन्द्रमा मनसोजातरवक्षोः सूयों अजायत। सुखा- दिन्दश्चामिश्व प्राणादा युरजायत 1 १३ । .. नाम्या आसीदर्तरिक्ष॑ शीष्णों. यौः समव्तत । पह़चां '.भूमिर्दिशः श्रोजात्तथा लोकों -अकस्पयर्‌ - - है४ । ( ऋरा १० । ९० ) ' (प्रजापति के ) मन से चन्द्र उत्पन्न हुआ, नेंत्रं से सूर्य, मुखे से इन्द्र और अभि और मराण सें वायु उत्पन्न हुआ। ९३१।. ( जिसे उस के अड्डों में देवताओं की कल्पना , है ). वैते छोकों 'की ( उत् के अड्डों में) हम मकांर कल्पना करते हैं।. उसकी नाभि अन्तरिप्त हुंभा,.सिर से थी, पाओं से भूमिं और श्रोत्र से दिवाएं उत्पन्न हुई 1. १४ यह इस सक्त में मजापति के यज्ञ का भी इस प्रकार :लर्णन : किया है-- . : यत्‌ पुरुषण हविषा देवा, यज्ञमतन्वत । वसन्तों इस्यासीदाज्य ग्रीष्म इष्म* श्रद्धाविनकऋ१०।९१६ ) जब विराट्रूपी हृवि से देवताओं ने यज्ञ को फेडाया, तच वसन्व ऋतु-इस “का आउ्य, ग्रीष्म ऋतु .ईवन, और शरत ऋतुः इवि 'बना. 1 .? -




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