उत्तमी की माँ | Uttami Ki Ma

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Uttami Ki Ma by Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्दद उत्तमी की मां _ उत्तमी की आँखों में ऐसी प्यास श्र यौवन के उभार में कुछ ऐसा द्राकर्षण था कि नौजवानों और अघेड़ों के लिये भी उसकी उपेक्ञा कठिन हो जाती । उसकी प्रकृति भी खालिस घी की सी हो गई थी कि पुरुष के सामीप्य की अ्ाँच पाते ही उसे पिघलने से बचाया नहीं जा सकता था | सवा बरस मुश्किल्न से बीता होगा कि उत्तमी मामी के लिये मुसीबत हो गई । कई बार मामी ने उत्तमी को पीटा और उसकी वजह से मामा ने मामी को मारा । श्राखिर एक दिन मामी उत्तमी को लेकर लाहोर झ्रा गई दर ननद की सुलक्षणी बेंटी की बाबत बहुत कुछ बक-भक कर उसे छोड़ गईं | उत्तमी की मां ने रो-रो कर श्रपना माथा ठोका द्रौर उत्तमों को गालियां दीं-- तुके श्रपने गले में बांध कर मैं किस कुएँ में जा मरूँ ? मालूम होता कि तू ऐसी चुड़ेल निकलेगी तो श्रपनी कोख फाड़ कर तुझे मार डालती त्और मर जाती उत्तमी पर भयंकर पहरा लग गया | उसकी श्रवस्था जेल की कोठरी में बन्द केंदी से भी बदतर हो गयी । उसके गली की खिड़की की श्र जाते ही ईग्रौरमांकी आँखें सुख हो जातीं श्रौर गालियों की बौछार पड़ जाती | उत्तमी ने इन सब नियंत्रणों श्रोर लांछनों का कोई विरोध नहीं किया । वह स्वयं मन में लज्जित श्र कुंठित थी । बैंठी-बेंदी सोचा करती जो कुछ मेरे भाग्य में नहीं था वह पाप मैंने क्यों किया । मर जाने की इच्छा हुई पर मर नहीं सकी । कोठरी में बन्द रहने से उसकी भूख कम हो गई श्र स्वेटर का नूर भी उड़ गया | खुर्मानी की सी ललाई लिये गोरा रंग श्रब बरसात के दिनों में किसी टीन की चादर के नीचे उग कर लम्बी दो गई घास की तरद पीला-सफेद-सा हो गया । प्रायः सिर दद रहने लगा | सिर दरद से फटने लगता तो उत्तमी मद से कुछ न बोल कर दुपट्टे से सिर को कस कर बाँध लेती । मां कंसे न समभकती । पूछती-- व्या हुआ है री सिर को ? ला दबा द | तेल रगड़ दू । केसे खुश्क हो रहा है जेंसे चील का घोंसला मां उसकी बाँद पकड़ कर देखती श्रौर कहती -- तेरा बदन तो गरम लग रहा हैं कुछ नहीं मां --उत्तमी यल् जाती । मुंह से एक शब्द भी बोले बिना उसे दो-दो दिन बीत जाते |




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