उत्तमी की माँ | Uttami Ki Ma
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.53 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दद उत्तमी की मां _ उत्तमी की आँखों में ऐसी प्यास श्र यौवन के उभार में कुछ ऐसा द्राकर्षण था कि नौजवानों और अघेड़ों के लिये भी उसकी उपेक्ञा कठिन हो जाती । उसकी प्रकृति भी खालिस घी की सी हो गई थी कि पुरुष के सामीप्य की अ्ाँच पाते ही उसे पिघलने से बचाया नहीं जा सकता था | सवा बरस मुश्किल्न से बीता होगा कि उत्तमी मामी के लिये मुसीबत हो गई । कई बार मामी ने उत्तमी को पीटा और उसकी वजह से मामा ने मामी को मारा । श्राखिर एक दिन मामी उत्तमी को लेकर लाहोर झ्रा गई दर ननद की सुलक्षणी बेंटी की बाबत बहुत कुछ बक-भक कर उसे छोड़ गईं | उत्तमी की मां ने रो-रो कर श्रपना माथा ठोका द्रौर उत्तमों को गालियां दीं-- तुके श्रपने गले में बांध कर मैं किस कुएँ में जा मरूँ ? मालूम होता कि तू ऐसी चुड़ेल निकलेगी तो श्रपनी कोख फाड़ कर तुझे मार डालती त्और मर जाती उत्तमी पर भयंकर पहरा लग गया | उसकी श्रवस्था जेल की कोठरी में बन्द केंदी से भी बदतर हो गयी । उसके गली की खिड़की की श्र जाते ही ईग्रौरमांकी आँखें सुख हो जातीं श्रौर गालियों की बौछार पड़ जाती | उत्तमी ने इन सब नियंत्रणों श्रोर लांछनों का कोई विरोध नहीं किया । वह स्वयं मन में लज्जित श्र कुंठित थी । बैंठी-बेंदी सोचा करती जो कुछ मेरे भाग्य में नहीं था वह पाप मैंने क्यों किया । मर जाने की इच्छा हुई पर मर नहीं सकी । कोठरी में बन्द रहने से उसकी भूख कम हो गई श्र स्वेटर का नूर भी उड़ गया | खुर्मानी की सी ललाई लिये गोरा रंग श्रब बरसात के दिनों में किसी टीन की चादर के नीचे उग कर लम्बी दो गई घास की तरद पीला-सफेद-सा हो गया । प्रायः सिर दद रहने लगा | सिर दरद से फटने लगता तो उत्तमी मद से कुछ न बोल कर दुपट्टे से सिर को कस कर बाँध लेती । मां कंसे न समभकती । पूछती-- व्या हुआ है री सिर को ? ला दबा द | तेल रगड़ दू । केसे खुश्क हो रहा है जेंसे चील का घोंसला मां उसकी बाँद पकड़ कर देखती श्रौर कहती -- तेरा बदन तो गरम लग रहा हैं कुछ नहीं मां --उत्तमी यल् जाती । मुंह से एक शब्द भी बोले बिना उसे दो-दो दिन बीत जाते |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...