इंदिरा | Indira

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Indira by पं. किशोरीलाल गोस्वामी - Pt. Kishorilal Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ध डल्डिशा दी कांडे गढ़ बढुतेरी बिदुटी # लगीं किन्तु ऐ | सांप ने तो काठडा नहीं / तब इसाश हो कर में छोट आई । भूख प्यास के मारे क्वांत हो गई थी--इसलिये अधिक भूम फिर न खक्ी छर पक स्वच्छ स्थान देख कर बेठ गई। सहसखा मेरे सामने पक सालू था सा हुआ खोचा कि में इसी के हाथों सरूगी--घसलोी उसे खेद कर मारने दौढ़ी । किन्तु इाय वह बेचारा सुभ से कुछ थी न बोला ओर घद जाकर एक सूच्त फरद लड़ गया । चूत के ऊपर से थोकी देर पीछे मनन सझ कर के हज़ारों मक्खियों का शब्द छुआ । मेंगे समसा कि इस जुन्त पर मघुसक्खयां हैं आलू भी यह बात जानता होगा इसी से मु लूटने के शोभ रू कक कर उस में मुसे छोड़ दिया 1 थोगी सात रहे मुझे ज़रा नींद था गई बेसी बैठी पेर से करँग वर से सो गई वयोथा पारिच्छेद अब कीं जाऊं ? जब मेरी नीन्द टूटी तब काक झोयल बोल रहे थे शीर घांख के पी मै खे दुरुरे टुकड़े होकर झातों हुई सूर्य की किश्ण पुथ्ची को मणि सुक्ाओओं से सज रही थी उंजाते में पढ़िखे दी देखा कि मेरे दाथ में कुछ नहीं है डॉकि लोग मेरे हाथ के करें झादि सब गहने छीन से जा कर मुझे विधवा सी बना गये हैं । लता विशेष चुश्थिकाती लता |




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