मेरी मुक्ति की कहानी | Meri Mukti Ki Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र किती दिन में अपनी जवानी के दस सालों के जीवन की करुणा- जनक और दिक्ाप्रद कद्दानी वयान करूँगा । सेरा खयाल है कि और भी चहुतेरे आदमियों को ऐसा ही अनुभव हुआ होगा । अपनी सम्पूर्ण आत्मा से में अच्छा बनना चाइता था लेकिन जब मैने अच्छा बनने की कोशिश झुरू की तो मैं जवान था तीखे स्वभाव का या वासनाओं से भरा था और अकेला था-- बिरकुल अकेला ।. जब-जब मैने नेतिक रुप से भला बनने की अपनी सची ख्वादिश जाहिर की तव-तवब हर बार मेरा उपदास किया गया और दिछगी उढाई गई लेकिन ज्योही मैं तुच्छ वासनाओं के आगे सिर झुका देता था मेरी तारीफ की जाती और मुझे बढ़ावा दिया जाता था । आकाक्षा दाक्ति का प्रेम लोभ कामुकता वा लम्पटता घमण्ड गुस्सा और प्रतिह्िंसा सब की इज्जत की जाती थी । इन वासनाओं के आगे सिर झुकाकर में वडे-यूढों सिनरसीदा लोगो की तरह हो गया और मैंने सहसूस किया कि वे मेरी ताइंद करते हैं । मेरी काकी जिनके साथ सै रहता था खुद बहुत ही झुद्ध और उचे चरित्र की थी लेकिन वह भी सुकसे सदा कद्दा करती थी कि उनकी किसी बात की इतनी इच्छा नदी है जितनी इस चात की कि मेरी किसी व्याहता औरत मे साँठ-गॉठ लग जाय । प्6 एप पाप ट0एाए16 प्त& 8४९८ एफ 1 दिए. कोई चीजू जवान आदमी को बनाने में उतना काम नहीं करती जितनी अच्छी जाति या पेंदाइश की एक आरत से उसकी घनिष्रता करती है । मेरे लिए दूसरा सुख वह यह चाहती थी कि मैं एडीकाग किसी सेनापति या प्रतिष्टित पदाधिकारी का




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