स्त्री विलाप | Stree Vilap

Stree Vilap by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र स्वो विलाप और एसा विवाह कोई नहीं जिस में पूजा न लगती हो ओर कभो कभो ग्रह इम के सिर को भी आन निपटते हैं तब यह अकिल के दुश्मत अपनों आसद- तब शादी करना, जब दो वर्ष गुजरते हैं ओर पास खाने को न'ों रद्ता म- लौट आये अब खुशी से शादी करो । कक्ककर बतादेते हैं, सूखे स्वियों में ती प्रोहित जौ ही काम चलाते हैं, में भी एक दफा किसी शादी से गई वहां प्रीछित जी को कर काम में विद क्ष में संकल्प मे कुल देव के आगे इर वक्त यह्तो पढ़ते सुना “आं नमो ब्रद्मण्य देवाय गो ब्राम्हण हितायच । जगडिताय कष्णाय गाविंदाय नमी नम: ॥” अब प्राित जौ कहते हैं कि फलाने महीने में फ्लाने दिन फलानी लग्न विद्या का लेश माच भी पंडित जी में नहीं होता पस “गणानांत्वा गणपति” नो का दरवाज़ा बंदकर मशहूर करते है कि चार वध काई विवाह न करे : ब्रहस्पति महाराज सिंगल दीप में तशरीफ लेगये हैं, जब वे वापिस आयेंगे | जदूरी करनी श्राती नहीं तब कह देते हैं, किहस्पति कन्यायों कौ पुकार सुन में' विवाह हो, इस में मज्ोना पह्चिले स्ग्न भेजी जाय, पंट्रवषं दिन पह्चसे ' हस्द घान दरेता हो, नो दिन दोनों वक्त तल चढ़ाया जावे, एक टिन पहिलें : मढा हो, द्सरे दिन विवाक्ष, तोमर दिन बढ़ार हो, चौथे डिस विदा छोजावे ; जो इन लग्नों मे सेरे कहने अनुसार विवाह न इुआ तो कन्या जाते हो रांड ' । अब इम प्रोछित जो से पूछतो हे कि अपनों लड़कियों का तो बराबर इ.- ; न्हों लग्नों से' विवाह करतेही फिर वे क्यों रांड जाती है * क्यों नहों उस शु भ लग्न को तलाश करते जिस में भारतखग्ड को स्त्रियां बेधव्य से बचें । बुढ़िया पुराण में विवाह के किसो काम मे कन्या को आलतने का अधिकार ! नहीं कींकि गड़बड़ स्मति में पंडित जीनें कलियुग के लक्तणों में कहा दे । कि जब कन्या अपने मुख से बरकी बात चौत करेगी विवाह को सामय्रो को ! खुद देखें गौ वहां बेठे गी तब वार कलियुग जानना | उस सत्ययुग का हो स्वरूप बनने को कलियुग का अपने ऊपर बहाना न लेने को विवाद की किसी वात में कन्या नहीं बोलती, जो प्रोहित, माता, पि- ता कहते हैं सब मंजूर करलेती है, जहां चाहें भेजद़े' जिस के हाथ चाहे पशु




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