भजन संग्रह गोसाई तुलसी दस जी की स्मृति | Bhajan Sangrah Gosai Tulsi Das Ji Ki Ismarti

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Bhajan Sangrah Gosai Tulsi Das Ji Ki Ismarti by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र ही तो किये पार उतारो जहाज ॥ अध-खंडन थी जनके. यही तिहारो काज 1 भर 5 । तुलसिदासपर किरपा. कीजे भगति-दान थी आज ॥। । ११ राग घना 1. ऐसी मूढ़ता था मनकी । । परिहुरि राम-भगति सुरर्सारिता आस करत ऑ बौनकी ॥ १ ॥ धूम समूह निरखि चातक ज्यों तृपित जानि म॑ नहिं तहूँ सीतलता न बारि पुनि हानि होत लो परत ज्यों गच-काँच विलोकि सेन जड़ छाँह आप॑नि गे । टूटत अति आतुर अहार बस छति विसारि 0 ॥३॥ लीं कहीं कुचाल कृपानिधि जानत हो नी । चुलसिदास प्रभु हरह दुसह दुख करहु लागि _ दल । ४ ॥। पु राग धनाश् जाजंँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे । काको नाम पत्तत-पावन जग केहिं दीन पियारे ॥। १ ॥। अधस उधारे | कचन सुर तारे ॥॥ २ ॥1 कौन देव वराइ बिरद-हित हुठि- खग मृग व्याघ पान विट्प जड़ देव दनुज मुनि नाग माया-विवस धिचारे । तिनके हाथ दास तुलसी कहा जपनपी हारे ॥ ३ ॥ रह ः १ राग घनाशी मेरो मन हरिजू दृठ ने तुफ़े । नेसिदिन नाथ देखें बरत सुभाउ निज ॥ १ ॥




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