कालिदास के नाटक | Natak Kalidas Ke

Natak Kalidas Ke by जगदीश दीक्षित 'आनन्द' - Jagdish Dixit 'Anand'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रसिज्ञान शाकुर क १४ पहल कीच भी ग्रत बोले--में सहाराज दुष्यन्त का सेवक हूं तपस्वियों के किसी कार्य में विघध्न न पड़े इसलिए मेरी वन में नियुक्ति हुई है । राजा ने उत्सुक होकर पूछा--यह शकून्तला . किस प्रकार सहामूनि कण्व की पुत्री हुई ? सहामूनि के तो कोई पुत्री थी नहीं ? .... इसपर झनसूया ने के मेनका के साथ से जन्म की कथा कह सुनाई | राजा यह सब सोच ही रहे थे कि उनकी गंभीर मधुर वाणी देवताओं-सा मनहर सौन्दयं श्रौर उनके तेज से प्रभावित हो उनकी श्रोर श्राकरषित होती जा रही थी । श्रपने मन को शान्ति देने के विचार से वह वहां से जाना चाहती थी । उसने प्रियंवदा से कहा--सखी में तो जा रही हूं । श्रतिथि का स्वागत करके तुम भी श्रा जाना । पर प्रियंवदा बोली--पहले इन पौधों को जल तो दे लो | श्रन्यथा यह ऋण तुम पर बना ही रहेगा शकन्तला इस पर थी राज़ी नहीं हुई वह उठकर चलने लगी तो प्रियंबदा ने जिद की श्रौर उसे रोका । तभी दष्यन्त को कछ विचार । उन्होंने श्रपने हाथ की श्रंगठी उतारी श्रौर प्रियंवदा की ग्रोर सा




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