प्राकृतिक चिकित्सा | Prakratik Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रस्तावना 1 के है तो वह किसी न किसी दूसरे रास्तेसे बाहर निकल सकता है और प्राणोंका भय उपस्थित कर सकता है । इसी प्रकार आजकछ जितनी दवाइयां चल पढ़ी है थे शरीरकें अन्दर रोगरूपी सॉपको केवठ दाव देने मात्रका ही काम करती है । सेपपको घरमेंसे बिठकुठ निकाठ देनेकी उनमें चक्ति नहीं है । इसछिए इन दवाइयोंका खाना रोग मेटनेका उत्तम उपाय नहीं हें । उत्तम उपाय तो यह है कि कोई ऐसी दवा खाई जाय जो प्रकृतिको झरीरके भीतरसे जहर निकाठनेके काममें सहा- यता पहुँचावे । झारीरके भीतर जो मेठ या जहर सचित हो जाता है उसे प्रकृति चार मुख्य रास्तोंसे शर्रीरके वाहर निकल देती है । पहला रास्ता है फेंफडे । इस रास्तेसें खून आदिके साथ मिला हुआ मैठ “ कार्बोनिक गेस * अथवा भाफ आदिके रूपमें वाहर निकठ जाता है । दूसरा रास्ता है ख़ाठ । खाठकें छोटे छोटे छिद्रॉमिंसे होकर शरीरके भीतरसे जो पसीना निक- ठता है वह भी एक प्रकारसे णरीरके भीतर संचित हुए मेठकी सफाई है । तीसरा रास्ता है गुदा, जिसके द्वारा पासानेके स्वरूपमें शरीरके भीतरका मलिन पदार्थ वाहर होजाता हे । चौथा रास्ता मूत्रेन्द्रिय है, जो कि सूत्रकें रूपमें शरीरके भीतर संचित हुए मेठको बाहर निकाठती रहती है। अतएव जव कभी शरीरं अधिक मेठ सचित हो जाय और श्रककृति इन चारों रास्तोंसे उस मेठको वाहर निकाठनेकी चेष्टा करे, तो कुछ ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे कि प्रकृतिको इस मठ निकाठ- नेके काममें सहायता पहुँचे । यही रोगोंके दूर करनेका असठी उपाय भी है । कितु शरीरके भीतरका मेल निकाठनेमें जो ओपधियोाँ सहायता पहुँचानेके साथ साथ शारीरकी शक्तिको भी कम करती हों, वे दवाइयों निकम्मी है । उन दवाइयेंकी चेष्टा तो प्रकृतिकें बिल्कुल विरुद्॒जाकर पड़ती है । उदाहरणके ठिए जमाठगोंटा ख़ानेसे अथवा एरण्डका तेठ




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