जिन शासन का रहस्य | Jin Shasan Ka Rahsya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री जिन शामन था रहस्य प्‌ री पिडम्वना हैं । शास्ों में पुरुपार्थ के धर्में र्थ काम मो ये चार भेद क्य गये है। मैं कद चुका हूँ कि घर्मसेवन तो तत्कालीन श्रानन्दमय हो रहा पुगप ्र्थात श्ात्मा का अब यानी प्रयत्नजन्य शुभ कर्तव्य है दी श्र धार्मिक कार्यों के लिये न्याय पूर्वक घन उपाजेन करना बर्थ पुरपा्थ है। उस धन से गौणरूपेण श्रानुसंगिक लौकिक कार्य भी भले दी साथ लिये जाँय किन्तु मुरय लय वद्दी है। घुड्डम्गियों या चोर ढाऊुश्रों के लिये इस मात्र पापास्रम को करने याले घन के उपाजन में चौीसों घन्टे लगे रहना तीश्र परिम्र् कदलाता है अर्थ पुरुपाये नददीं । काम पुरुपार्थ तो घर्म अर्थ से भी यढिया ट् न्यायपूर्वक इन्द्रियों के भोग उपभोगों को भोगकर उनकी तह पर पहुंचते हुए बैराग्य सम्पादन करना कामपुरपाथे माना गया है । सागारघमामृत में मद्दा पिद्ान श्याशाघर भी ने फद्दा हे -- पिपयेषु सुखश्राति कर्मामिम्खपाफजाम्‌ । छित्मा तदुपभोगेन त्याजये्तान्‌ स्ययत्परम्‌ ॥ मोगों को नीतिमागे अनुसार भोगफर जो ठोस बैराग्य प्राप्त दोता है चद्द भोगा को भोगे बिना दरिद्र जन के साग्य में नहीं होता दै । धघारिपेण श्रौर पुष्पडाल इसके दृष्लान्त हैं। वस्तुत केले के थम्मे समान निसार भोगों को मोंगकर तस्वज्ञानो को बैंरा्य हुए चिना नददीं रददा है. । करोड़ों नर नारियों के सन्मुख सीता ने जो झमिपरिक्षा में उत्तीएंता प्राप्त की उससे घढफर




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