मानस - रहस्य | Manas Rahasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14.99 MB
कुल पष्ठ :
512
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीरामावतारके विभिन्न हेतु और उनका रहस्य... १५
व्यापक, परमानन्द, परेश, पुरातन ब्रह्म हैं--इसे जगत जानता है ।
वही प्रसिद्ध पुरुप प्रकाशनिधि परातरनाथ रघुकुरूमणि मेरे स्रामी हैं;
ऐसा कहकर डिंवनीने अंपना सिर नवाया 1!
पुरुष मसिद्ध प्रकास. निधि. . प्रगट परावर नाथ 1
रघुकुलमनि सस स्वासि सोइ कहि सियवे नायड साथ ॥
अर्थाद् प्रिषय, इन्द्रियाँ, सुर; जीव प्रम्ति जो एक-से-एक
सचेत औ हैं---इन समीकों परम प्रकार प्रदान करने-
चाठे अनादि राम वही ( सो ) अवघनाय रघुकुलमणि श्रीरघुनाथजी
इसके वाद निज भ्रम नहिं समुझहहिं अग्यानी” इस चौपाईसे
भ्रमका निराकरण करते हुए अन्तकों इस चौपाईमें फिर कहा--
रण
सब कर परम प्रकासक जोई । राम अनादि अवध, पति सोई ॥
अर्थात् संसारमें संवोग-वियोग, हर्ष-विषाद।दि यावत् व्यवहार हैं
सबका प्रकाश कानेवाले व्यापक अन्तर्यामी प्रमु वहीं ( सो )
श्रीरघुनाथजी हैं, उन्हींसे चैतन्यका उद्धव होता है; भला, उनमें मोह-
'कहाँसे सम्भव है ? यह जगदू जिन प्रमुकी मायासे “सत्य हब”
भासित हो रहा है, जो तीनों कालमें मिथ्या होनेपर भी नीयोंकों
दुःख दे रहा हैं; जैसे खप्नावस्थामें कोई हमारा सिर काट लेता है तो
उसकी व्यथा न. जागनेतका सत्य ही प्रतीत होती है, इसी प्रकार इस
संसारके श्रमात्मक टु:खकी निद्दत्ति जिन प्रमुकी ही झपासे होती है---
है गिरिजा ! बह कृपाठ श्रीखुनाथनी ही हैं--
जासु कृपा जस भ्रम मिटि जाई । गिरिनना सोइ कृपाठ रघुराई ॥!
जिनकी सत्तासे स्रमकी स्थिति है तथा निनकी झ्ञपासे ही भ्रमकी
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